प्रयागराज ब्यूरो । शहर की प्राइवेट पैथोलाजी और नर्सिंग होम्स के लिए डेंगू का सीजन पिछले कुछ सालों से काफी रिच जा रहा है। डेंगू के डर से महंगी जांच होती है और इलाज में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं। लोग जान बचाने के लिए पैसा पानी की तरह बहाते हैं। एक बार फिर जुलाई के बाद अगस्त, सितंबर और अक्टूबर का महीना आ रहा है। इन्ही तीन महीनों में डेंगू के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं।
हर पैथोलोजी अपना फिक्स रेट
डेंगू की पुष्टि के लिए दो तरह की जांच पैथोलाजी में कराई जाती हैं। एक जांच रैपिड होती है और इसमें किट के जरिए डेंगू की सस्पेक्टेड जांच होती है। दूसरी जांच एलाइजा होती है जो प्राइवेट लैब में काफी महंंगी कराई जाती है। सरकार इसी जांच को अधिकृत मानती है। इन सभी जांचों के प्रत्येक पैथोलाजी में अलग अलग रेट लगाए जाते हैं। जबकि सरकारी में यही जांच फ्री या कम पैसों में की जाती है। सीजन में प्रत्येक पैथोलाजी में रोजाना सैकड़ों जांच होती हैं।

कितने पैसों में होती है कौन सी जांच
प्राइवेट लैब में एलाइजा जांच- 1400 से 2100
डेंगू एडवांस फीवर पैनल- 1900
डेंगू नार्मल किट टेस्ट- 800
रैपिड एनएसवन, आईजीजी, आईजीजीएम- 1200
सरकारी लैब में एलाइजा जांच- 400
सरकारी अस्पताल में रैपिड किट जांच- फ्री आफ कास्ट

आखिर जाएं तो जाएं कहां
बेली और काल्विन अस्पताल में डेंगू की रैपिड किट जांच की जाती है और यह फ्री में होती है। जबकि डेंगू की अधिकृत एलाइजा जांच केवल एमएलएन मेडिकल कॉलेज में होती है और यहां पर इसकी फीस 400 रुपए निर्धारित है। लेकिन सैंपल अधिक होने की वजह से यहां पर रिपोर्ट मिलने में तीन से चार दिन लगते हैं। ऐसे में मरीज मजबूरी में प्राइवेट लैब में जाकर मोटी रकम खर्च करते हैं। यहां पर 24 से 40 घंटे के भीतर जांच रिपोर्ट सौंप दी जाती है। बता दें कि शहर में इस समय 200 से अधिक प्राइवेट पैथोलाजी है और इसमे ंसे कुछ में ही एलाइजा जांच की सुविधा दी जाती है।
इलाज का पता नहीं, बिल लाखों में
पिछले साल पेशे से टीचर विनय कुमार को डेंगू हो गया था। परिजनों ने उन्हे टैगोर टाउन के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया था। यहां पर नौ दिन वह भर्ती थे और इलाज का बिल 2.5 लाख का बना। इसी तरह से लूकरगंज के रहने वाले मोनू पांडेय को भी डेंगू हुआ था। नजदीक के एक निजी अस्पताल मं इलाज के नाम पर पांच दिनों में दो लाख रुपए का बिल बना दिया गया। जबकि डाक्टर्स का कहना है कि डेंगू का कोई स्पेसिफिक इलाज नही है। यह सिम्प्टम्स के आधार पर किया जाता है। तब इतना अधिक बिल बनाने के पीछे डर का ही सौदा है।