बेटियों को बेटों से कम आंकने वालों की सोच पर दीपा मिश्रा ने जड़ा तमाचा
PRAYAGRAJ: बेटी को बोझ समझने वाले लोगों की सोच पर दीपा मिश्रा का कार्य एक करारा तमाचा है। तमाचा इस बात के लिए भी है, जो बेटियों को बेटों से कम आंकते हैं। चार बहनों में बड़ी दीपा मिश्रा ने पिता अवनीन्द्र कुमार पाठक की चिता को मुखाग्नि दी। सिर्फ इतना ही नहीं, बाकायदे दाग देकर वह गरुण पुराण तक करवा रहीं। पिता का क्रियाकर्म सिर्फ बेटे ही करते हैं, इस भ्रम की दीवार को उन्होंने ढहाया तो लोगों के बीच सराहना व चर्चा का विषय बन गई।
पति ने दिया दीपा को फुल सपोर्ट
अवनीन्द्र कुमार पाठक के भाई और भतीजे भी हैं। कोराना ने जब अवनीन्द्र को अपनी जलद में लिया और यह बात परिवार वालों को मालूम चली तो वे दूरी बना लिए। सेवा तो दूर उनकी डेहरी तक लांघने में लोगों को भय लगने लगा। पिता की यह हालत सुन उनकी चारों बेटियां ससुराल से मायके आ पहुंची। चार बहनों में बड़ी दीपा व रेखा पिता की सेवा में जूझने लगीं। काम की व्यस्तता के चलते अन्य दो बहनें आई और चली गई। दीपा और रेखा एक बेटे को मात देते हुए एसआरएन हॉस्पिटल तक पिता की परछाई बनी रहीं। मौत से लड़ रहे पिता के कंधे से कंधा मिला कर इस जंग में दोनों बहनें उनके साथ खड़ी रहीं। मेहनत रंग लाई और अवनीन्द्र पाठक की रिपोर्ट कोरोना निगेटिव आ गई। यह सुन चारों बेटियां काफी खुश थीं।
निगेटिव होने के बाद तोड़ा दम
अफसोस कि 28 अप्रैल को अवनीन्द्र पाठक की आंखें सदा के लिए बंद हो गई। पिता की मौत पर बेटियों का कलेजा मुंह को आ गया। कोरोना से उनकी मौत समझ परिवार के चंद लोग पास आने तक से कतराते रहे। बेटियां पति के सपोर्ट से पिता की अर्थी रसूलाबाद घाट ले गई। औनीन्द्र पाठक के बेटे थे नहीं। दीपा कहती हैं परिवार का भी कोई शख्स पिता का क्रिया कर्म करने के लिए आगे नहीं आया। कहते हैं दामाद ससुर का दाहसंस्कार नहीं करते। लिहाजा चारों बहनें और उनके पति धर्म संकट में थे। दीपा मिश्रा ने मेजा के सोनाई औंता गांव निवासी पति कृपाशंकर मिश्रा से पिता के अंतिम संस्कार की इजाजत मांगी। पत्नी दीपा की बात सुनकर कृपाशंकर ने हामी भर दी। पति की अनुमति मिलने के बाद दीपा एक बेटे की तरह पिता की चिता को फेरा लीं और मुखाग्नि दीं। इसके बाद दीपा ने एक बेटे की तरह पिता का क्रिया कर्म करने का निर्णय लिया। उनकी हर इच्छा पर पति कृपाशंकर मुहर लगाते गए वह वह बेटियों को बेटों से कमजोर समझने वालों की सोच को तमाचा जड़ती गई। दीपा मिश्रा बाकायदे पिता का दाग देकर गरुण पुराण करवा रहीं। बाकायदे तख्त पर लोटा, छूरी लेकर बैठीं दीपा रोज पति के साथ पैदल घंट में दीपक जलाने व जल देने भी जाती हैं। अलग-खाना और पानी सारा कुछ वैसे ही कर रहीं, जैसे दाग देने वाला एक बेटा करता है।
ड्यूटी के दौरान बनवाए थे मकान
दीपा मिश्रा कहती हैं कि पिता अवनीन्द्र पाठक कारपेंट्री कटरा में बाबू के पद से रिटायर हो चुके थे।
ड्यूटी के दौरान ही वह रसूलाबाद ढाल के नीचे चौथी गली में मकान बनवाए थे। इसी मकान में चारों बहनें दीपा, रेखा, संज्ञा दुबे और आरती का जन्म हुआ।
दीपा के तीन बेटे शारदा प्रसाद मिश्रा, देवी प्रसाद मिश्रा व शिव प्रसाद मिश्रा हैं।
शारदा प्रसाद दिल्ली में रहते हैं इन दिनों उनका वहां एक्सीडेंट हुआ है।
देवी प्रसाद भी दिल्ली में ही रहते हैं। छोटा बेटा शिव नाना की अंतिम यात्रा में साथ था।
दीपा कहती हैं कि शिव का जनेऊ नहीं हुआ। नहीं तो वही नाना का क्रिया कर्म कर देता।
दो बड़े बेटे दिल्ली में ही हैं, उसमें एक का एक्सीडेंट हुआ है।
ससुर के सिर्फ चार बेटियां ही हैं। उनकी डेथ के बाद की स्थिति देख पत्नी दीपा ने ने पिता के अंतिम संस्कार का निर्णय लिया। उनकी सोच मुझे बहुत अच्छी लगी। वह मुझसे इस काम के लिए पूंछी तो पिता के प्रति बेटी का यह रूप देख आंखें भर आई। भला इस नेक काम के लिए मैं उन्हें कैसे रोक सकता था?
कृपाशंकर मिश्रा
निवासी सोनाई औंता थाना मेजा