प्रयागराज (ब्यूरो)। शास्त्रीय संगीत के प्रेमी इसे धीर धारण करके सुनते हैं। इसमें लय, सुर, ताल सब में एक तारतम्यता होती है। शास्त्रीय गायन की वैसे तो कई शैलियां हैं, इन्हीं शैलियों मे से एक है धु्रपद धमार। इस शैली से आज के युवा को परिचित कराने और इस शैली के प्रति रूची जागृत करने का कार्य धु्रपद धमार गायक पं विनोद कुमार द्विवेदी के द्वारा किया जा रहा है। प्रयागराज में प्रस्तुति देने आए पं। विनोद ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से बातचीत की।
संगीत से किसी का न था घर में नाता
पं विनोद द्विवेदी का जन्म बांदा जिले के ग्राम गढेरिया में हुआ। इनके पिता काशी प्रसाद द्विवेदी और माता चंदन देवी हैं। इनके पूरे परिवार में किसी का संगीत से कोई नाता न था। इनको संगीत की प्रेरणा की मामा पं। साधू प्रसाद शुक्ल से मिली। वो गाया बजाया करते थे। इंसान कितना भी बचने की कोशिश करे मगर उन पर ननिहाल पक्ष का कुछ न कुछ अंश आ ही जाता है। ऐसा ही ध्रुपद धामर गायक पं। विनोद कुमार द्विवेदी के सापेक्ष मे है। वह बताते हैं कि बचपन से ही धू्रपद गायन का शौक था। प्रारंभिक शिक्षा गायत्री विद्या मंदिर भरूहा सुमेरपुर मे हुई। बचपन से ही संगीत मे रूची होने के कारण वह अपने विद्यालय के स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर प्रोग्राम में प्रस्तुति देते थे। वह बताते हैं कि साल 1975 में 15 अगस्त के अवसर पर उनकी ध्रुपद गायन प्रस्तुति को पहला पुरस्कार मिला। तब वह हाईस्कूल के छात्र थे। प्रिंसिपल ने उन्हें पांच रूपए का एक नोट पुरस्कार स्वरूप दिया। जिसने उस समय के बाल मन को धु्रपद गायक बनने का सपना दिखाया।
माँ ने बेचे चाँदी के सिक्के
वह बताते हैं कि गायक बनने का सफर आसान न था। पिता जी चाहते थे की वो डॉक्टर बनें। मगर बाद में मेरी संगीत के प्रति लगन को देखते हुए वे मेरी बात मान गये। गायन की शिक्षा लेने के लिए मुझे ग्वालियर के संगीत विद्यालय मे प्रवेश लेना था। जिसके लिए पैसे की आवश्यकता थी। परिवार में तीन भाई और दो बहनें थीं। किसान परिवार होने के कारण घर मे आमदनी कम और खर्चे ज्यादा थे। ग्वालियर जा पाना मुश्किल था। ऐसे में मां ने साथ दिया। बेटे को ग्वालियर भेजने के लिए अपने चाँदी के सिक्के बेच दिये। वहां पर जाकर कालेज न मिलने के कारण ये कानपुर अपनी चचेरी बुआ के यहां चले आए।
कई दिन तक अंधेरे कमरे मे रहे
उम्र करीब 19 वर्ष रही होगी जब अपनी बुआ का घर छोड खुद के किराए के कमरे मे रहने लगे। जहां पर न तो बिजली की सुविधा थी और न खाने की व्यवस्था थी। चार सालों तक घर के किसी भी व्यक्ति ने कोई खबर नहीं ली। वह बहुत ही कठिन दौर चल रहा था। कई दिनों तक अंधेरे कमरे मे रहना पड़ा। इसी तरह का संघर्ष लगभग दस वर्षो तक चला। इस बीच एक अच्छी बात ये रही कि छोटे मोटे कार्यक्रमों मे काम मिलता रहा। जिस वजह से जीवकोपार्जन करने बहुत बड़ा सहारा बना। विनोद कुमार द्विवेदी को ध्रुपद धमार गायक पं। विनोद कुमार द्विवेदी बनाने में कई गुरूओं का योगदान है। सबसे अहम योगदान जिस गुरू का रहा उनके अध्यात्मिक गुरू शोभन सरकार का। इन्होंने अपने गुरू शोभन सरकार पर एक पुस्तक लिखी जिस पुस्तक का नाम धू्रपद शोभनम् रखा। उन्हें अब तक उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, पूर्व राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद द्वारा मानद श्री, धु्रपद कला मार्तंड, ध्रुपद माईस्ट्रो यूएई सरकार द्वारा मिल चुका है।