कोरोना के खतरे से बेखबर हो गई है पब्लिक
अस्पतालों की ओपीडी में होने लगी जबरदस्त भीड़
एक मरीज को दो मिनट भी दे पाना मुश्किल
कोरोना की दूसरी लहर जा चुकी है। तीसरी लहर संभावित बताई जा रही है। लेकिन इन सबके बीच जिंदगी एक बार फिर पटरी पर लौटने की कोशिश कर रही है। अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की जबरदस्त भीड़ होने लगी है। बड़ी संख्या में लोग डॉक्टर के पास पहुंच रहे हैं। बावजूद इसके लोग पिछली त्रासदी को भूलकर लापरवाही बरत रहे हैं। सोशल डिसटेंसिंग और मास्क से लोगों का ध्यान हटने लगा है।
भूल गए सोशल डिसटेंसिंग
कोरोना की दूसरी लहर जाने और लॉकडाउन हटा लिए जाने के बाद अस्पतालों की ओपीडी की क्या स्थिति है, इसका जायजा दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने शनिवार को लिया। हमने देखा कि काल्विन अस्पताल में फिजीशियन ओपीडी के बाद 50 से 60 लोग मौजूद हैं। भीतर भी 10 से 20 मरीज मौजूद हैं। सभी के बीच सोशल डिसटेंसिंग का पालन नही किया जा रहा था। कोई मरीज खांस या छीक रहा था तो उससे भी दूसरे बेखौफ बने हुए थे। यही हाल आर्थोपेडिक ओपीडी और रजिस्ट्रेशन काउंटर का नजर आया। यहां पर भी सोशल डिसटेंसिंग पूरी तरह नदारद थी।
पांच घंटे में देख रहे 150 मरीज
नार्म्स की बात करें तो एक ओपीडी में एक दिन में अधिकतम 40 मरीज देखे जाने का प्रावधान है। लेकिन अस्पतालों की ओपीडी में यह संख्या प्रति ओपीडी 150 मरीज को क्रास कर रही है जो कि मानक से 4 गुना है। हमें बताया गया कि सबसे ज्यादा भीड़ फिजीशियन की ओपीडी में होती है। काल्विन में ऐसी तीन ओपीडी पर डे रन कराई जाती है। जिसमें एक दिन में 450 से 500 औसतन मरीज देखे जाते हैं। ऐसे में सुबह 9 से दोपहर 2 बजे के बीच प्रत्येक डॉक्टर 150 से अधिक मरीज अटेंड कर रहा है। इसके चलते उसका प्रति मरीज दो मिनट भी दे पाना मुश्किल है।
अधूरी डायग्नोस्टिक के बाद लिख दी दवा
हमने पाया कि मरीजों की संख्या अधिक होने से डॉक्टर्स मरीजों की पूरी जांच भी नही कर पा रहे थे। मरीज पूरा लक्षण बता पाए उसके पहले ही उसका पर्चा तैयार हो चुका था। पूछने पर डॉक्टर्स ने बताया कि सरकारी अस्पताल में किसी मरीज को मना नही किया जा सकता है। सभी को निश्चित समय के भीतर देखना है। संख्या इतनी ज्यादा होती है कि सभी को प्रॉपरली अटेंड करना मुश्किल है। इस बीच कोई सीरियस मरीज आ जाता है तो बाकी मरीजों को और कम समय देना पड़ता है।
बॉक्स
कोविड जैसे मिलते हैं लक्षण
इस सीजन में कोविड और सामान्य वायरल इंफेक्शन के मरीजों में अंतर करना मुश्किल साबित हो रहा है। अधिकतर मरीजों को फीवर, खांसी, छीक, सीने में जकड़न और सांस फुूलने की शिकायत है। ऐसे में डॉक्टर्स मरीजों को फीवर हेल्प डेस्क जांच के लिए भेज देते हैं। हमने देखा कि इन लक्षणों वाले कई मरीजों ने मास्क भी नही पहना था। जिससे ओपीडी में डॉक्टर्स समेत अन्य मरीजों को संक्रमण का खतरा मंडरा रहा था।
पर्चा काउंटर पर धक्का-मुक्की
अस्पताल के पर्चा काउंटर पर भी जबरदस्त धक्का मुक्की दिखी। यहां पर तीन लाइनों में खड़े लोग एक दूसरे से सटे हुए थे। आधे से अधिक ने मास्क नही लगा रखा था। पूछने पर पता चला कि वह काफी देर से लाइन में लगे हैं। पास में खड़े गार्ड से पूछा तो उसने कहा कि लोगों को टोका जाता है लेकिन वह मानते नही हैं। लोग अधूरा मास्क लगाते हैं जो खतरनाक है।
मरीज हमारे कंट्रोल में नही हैं। उनको अगर मास्क लगाने को कहो तो लड़ने लगते हैं। इस मामले में हम कर क्या सकते हैं। हमारे पास पुलिस फोर्स भी नही है कि मरीजों को काबू किया जा सके।
डा। प्रेम मोहन गुप्ता, एसआईसी, काल्विन अस्पताल