- कचहरी परिसर में एफिडेविट बनवाने के नाम पर लोगों से वसूल रहे दूना रुपये

- दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की रियलिटी चेक में सामने आई धनदोहन की हकीकत

PRAYAGRAJ: लॉकडाउन खत्म होने के बाद जिंदगी की गाड़ी पटरी पर स्पीड भरने लगी है। जिला कचहरी का सन्नाटा भी टूटने लगा है। इन दिनों कचहरी परिसर में एफिडेविट बनवाने वालों की खासी भीड़ है। जरूरतमंदों की मजबूरी को कैस में कनवर्ट कर रहे स्टांप वेंडरों काफी व्यस्त हैं। एक साधारण एफिडेविट में लगने वाले खर्च करीब सौ रुपये की बजाय 200 की वसूली की जा रही है। यह मुंहमांगी कीमत वसूल करने वालों की संख्या यहां ज्यादा है। वाजिब दाम लेकर लोगों के एफिडेविट बनाने वालों की संख्या यहां गिनती के ही मिले। यह हकीकत सोमवार दोपहर दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट द्वारा किए गए रियलिटी चेक में सामने आई।

कचहरी परिसर का टूटने लगा सन्नाटा

कोरोना संक्रमण काल में हर तरफ खौफ का मंजर था। हर इलाके में मौत और मातम से लोगों का कलेजा कांप रहा था। इंसाफ की डेहरी पर बैठने वाले कई अधिवक्ता भी कोरोना की चपेट में आ गए। कुछ की तो कोरोना ने जान ले लिया। हालात को देखते हुए सरकार द्वारा लॉकडाउन लगा दिया गया। लॉकडाउन की वजह से कचहरी में सन्नाटा पसर गया। हफ्तों अदालत में न वकील पहुंचे और न ही फरियादी। यहां तक कि एफीडेविट जैसे काम भी ठप पड़ गए थे। इन दिनों कोरोना का असर कम होने के बाद लॉकडाउन समाप्त किया गया। लॉकडाउन हटने के बाद धीरे-धीरे लोगों की जिंदगी पटरी पर आने लगी। काम धंधे भी रफ्तार पकड़ने लगे हैं। कचहरी में पसरी खामोशी भी टूटने लगी है। सोमवार को कचहरी परिसर गुलजार रहा। हालांकि पहले की तरह वाली भीड़ और अधिवक्ता की संख्या नहीं रही। स्टैंप वेंडरों की दुकान भी खुल गई है। हालात यह रहे कि कि एफिडेविट बनवाने की संख्या काफी थी। किसी को बैंक काम से तो कोई नौकरी या अन्य जरूरतों के लिए एफिडेविट बनवाने की जुगत में लगा रहा। बड़े दिनों बाद सामान्य हुए हालात में एफिडेविट की बढ़ी डिमांड को देखते हुए ज्यादातर वेंडर एक का दो वसूलने में मशगूल रहे। कई स्टैंप वेंडरों से एफिडेविट के खर्च और प्रोसीडिंग की जानकारी ली गई। गिने चुने वेंडर ही रहे जो टोटल खर्च 100 रुपये के करीब बताए। बाकी के सभी का रेट 200 से कम था ही नहीं।

स्टैंप से लेकर फीस तक का ब्योरा

रिपोर्टर द्वारा एफिडेविट के रेट में दूने के इस फर्क की पड़ताल की गई तो चौंकाने वाले बातें सामने आई।

सौ रुपये मांगने वाले वेंडरों ने कहा कि 200 रुपये तो नहीं मांगने चाहिए एक साधारण एफिडेविट में 100 रुपये बहुत है

रिपोर्टर के पूछने पर वह जोड़ना शुरू किया कहा दस रुपये का एक स्टैंप व दस रुपये में टाइपिंग के कुल बीस रुपये हुए

तीस से चालीस रुपये फीस अधिवक्ता की होती है चार से पांच रुपये के टिकट

इस तरह करीब 60 से 65 रुपये में एफिडेविट तैयार हो जाती है जिसकी डिमांड इन दिनों ज्यादा है

फिर भी सौ रुपये में 35 से 40 रुपये वेंडर को बच जाते हैं, फिर 200 रुपये कहां खर्च हुए

इस तरह रहिए यहां सावधान

एफिडेविट कोई भी हो, बनाने के लिए कचहरी पहुंचे हैं तो पहले घूम कर अच्छी तरह से पांच छह वेंडरों से बात करें। कोशिश करें कि वेंडरों के साथ कुछ अधिवक्ताओं से भी परामर्श लें। इसके बाद दोनों की बातों के बीच का एक रास्ता चुने। वह रास्ता वही चुनें जो खुद के फायदे की तरफ जाता हो। अच्छी तरह पड़ताल किए बगैर पहुंचते ही किसी एक दुकान पर जाकर आर्डर न दीजिए।