प्रयागराज (ब्यूरो)। फाइनल में गुजरात टाइटंस के लिए दूसरा ओवर करने पर किस तरह का दबाव महसूस किया?
कप्तान ने मुझे दूसरा ओवर फेंकने के लिए मुझे गेंद पकड़ायी तो नर्वस सा हो गया था। पहली गेंद फेंकने तक मुझ पर नर्वसनेस हावी रहा। लेकिन, पहली गेंद डालने के बाद मैं फुल कांफीडेंस में आ गया था। यह डर भी मन से निकल गया कि सामने खड़ा बल्लेबाज बटलर है।
कोच के साथ आपकी बांडिंग और एक्सपीरिएंस कैसा रहा?
आशीष नेहरा जी कोच थे। उन्होंने न सिर्फ मुझे लगातार गाइड किया बल्कि फुल सपोर्ट भी किया। टूर्नामेंट के शुरूआत में मैं घायल था। उस वक्त तो महसूस होने लगा था कि पता नहीं खेल भी पाऊंगा या नहीं? लेकिन, उन्होंने मुझे कमजोर नहीं पडऩे दिया। लगातार जोश भरते रहे और मेहनत करने के लिए प्रेरित करते रहे।
घरेलू क्रिकेट और आइपीएल में क्या अंतर महसूस करते हैं?
बस सोच का फर्क होता है। आईपीएल के मैदान पर दर्शक ज्यादा होते हैं। इसका प्रेशर आप पर ज्यादा होता है। अच्छा करते हैं तो दर्शक भी रिस्पांस करते हैं। यह मोरल बूस्ट करता है। आपमें जोश भरता है। घरेलू क्रिकेट में यह महत्वपूर्ण इस सेंस में होता है कि आपकी परफारमेंस ही आपको आगे का रास्ता दिखायेगी।
परिवार से तो फाइनल के बाद ही मिल लिया था होम टाउन आकर कैसा लगा?
एक्चुअली मुझे मुंबई से शाम की फ्लाइट लेनी थी। संयोग से लास्ट ऑवर्स में फ्लाइट कैंसिल हो गयी। इस चक्कर में मैं अपने होम टाउन काफी देर से पहुंचा। यहां लोगों को इंतजार में खड़े देखकर चौंक गया। मेरी फैमिली फाइनल देखने के लिए आई थी। मुझे एक दिन का समय मिल रहा था और इस पूरे समय मैं सबके साथ रहना चाहता था, इसलिए आ गया।
प्रयागराज में क्रिकेटर को आगे बढ़ाने के लिए सुविधाएं पर्याप्त हैं?
नहीं। यहां सुविधाएं न के बराबर हैं, हर चीज मुझे और पापा को खुद करनी पड़ती थी। समय ने बुरा और अच्छा दोनों समय दिखाया। बहुत ज्यादा रिजेक्शन देखना और फिर से आकर मेहनत करना बहुत कठिन था। यहां तक पहुंचने में मेहनत की हर लिमिट को पार किया है। अभी रणजी ट्राफी है, एक दिन बाद वहां जाना है। बस एक दिन के लिए आफ द ड्यूटी हूं। लक्ष्य एक है टीम इंडिया।