शासन के निर्देश के बाद नगर निगम में महिलाओं की सुरक्षा के लिए गठित की गई समिति
समिति में होंगी कुल चार महिलाएं, पीठासीन अधिकारी बनायी गईं अपर नगर आयुक्त रत्न प्रिया
नगर निगम में हजारों कर्मचारियों के साथ ही पार्षदों व अन्य लोगों को आगमन होता रहता है, इसमें महिलाओं की संख्या भी अत्याधिक होती है। इसी को लेकर नगर निगम में महिला कर्मचारियों की सुरक्षा के लिये नगर आयुक्त के निर्देश पर महिला सुरक्षा समिति का गठन किया गया। समिति के नेतृत्व पीठासीन अधिकारी के रूप में अपर नगर आयुक्त रत्न प्रिया को बनाया गया हैं समिति के सदस्यों का यदि ट्रांसफर होता है तो पीठासीन अधिकारी एवं सदस्यों का नामित किया जायेगा।
हाईकोर्ट में योजिट रिट याचिका के बाद शासन ने दिया निर्देश
नगर आयुक्त रविरंजन के अनुसार विशेष सचिव विकास के पत्र के अनुपालन के क्रम में हाईकोर्ट में योजिट रिट याचिका इनीशिएटिव फॉर इन्क्लूजन फाउंडेशन एवं अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के संबंध में पारित आदेश के अनुपालन में महिलाओं की सुरक्षा एवं उनकी शिकायतों के निवारण के संबंध में आंतरिक शिकायत निवारण समिति का गठन किये जाने का निर्देश दिये गये है।
समिति में कर सकते हैं शिकायत
नगर निगम में महिलाओं की सुरक्षा एवं उनकी शिकायतों के निवारण के लिये अधिकारियों एवं कर्मचारियों की एक समिति का गठन किया गया है। अपर नगर आयुक्त रत्न प्रिया को समिति का पीठासीन अधिकारी, कार्यालय अधीक्षक अनुपमा श्रीवास्तव, कनिष्ठ लिपिक माला द्विवेदी और एक गैर सरकारी संघटन की नाजिया नफीस को समिति का सदस्य बनाया गया हैं इसी आदेश के क्रम में महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम-2013 में दिये गये प्रावधानों के अन्तर्गत उक्त समिति के पीठासीन अधिकारी और प्रत्येक सदस्य अपने नाम निर्देशन की तारीख से तीन वर्ष अनधिक की ऐसी अवधि के लिये पद धारण करेगा, जो नियोजक द्वारा विनिíदष्ट की जाय। यदि सदस्यों में किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का ट्रांसफर होता है तो ऐसी स्थिति में पीठासीन अधिकारी एवं सदस्यों को नामित किया जायेगा। नगर आयुक्त ने यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश दिया है।
यदि सदस्यों में किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का ट्रांसफर होता है तो ऐसी स्थिति में पीठासीन अधिकारी एवं सदस्यों को नामित किया जायेगा।
रवि रंजन
नगर आयुक्त, प्रयागराज
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कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम-2013 यह कानून क्या करता है
यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता है
यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिन्हित करता है, और यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है।
यह कानून हर उस महिला के लिए बना है जिसका किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ हो
इस कानून में यह जरूरी नहीं है कि जिस कार्यस्थल पर महिला का उत्पीड़न हुआ है, वह वहां नौकरी करती हो
यौन उत्पीड़न क्या है
इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित व्यवहार या कृत्य यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है
इच्छा के खिलाफ छूना या छूने की कोशिश करना जैसे यदि एक तैराकी कोच छात्रा को तैराकी सिखाने के लिए स्पर्श करता है तो वह यौन उत्पीड़न नहीं कहलाएगा पर यदि वह पूल के बाहर, क्लास खत्म होने के बाद छात्रा को छूता है और वह असहज महसूस करती है, तो यह यौन उत्पीड़न है।
शारीरिक रिश्ता/यौन सम्बन्ध बनाने की मांग करना या उसकी उम्मीद करना जैसे यदि विभाग का प्रमुख, किसी जूनियर को प्रमोशन का प्रलोभन दे कर शारीरिक रिश्ता बनाने को कहता है,तो यह यौन उत्पीड़न है।
अश्लील तस्वीरें, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना जैसे यदि आपका सहकर्मी आपकी इच्छा के खिलाफ आपको अश्लील वीडियो भेजता है, तो यह यौन उत्पीड़न है।
कोई अन्यकर्मी यौन प्रकृति के हों, जो बातचीत द्वारा, लिख कर या छू कर किये गए हों
शिकायत कौन कर सकता है
जिस महिला के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ है, वह शिकायत कर सकती है
शिकायत कब तक की जानी चाहिए
शिकायत करते समय घटना को घटे तीन महीने से ज्यादा समय नहीं बीता हो, और यदि एक से अधिक घटनाएं हुई है तो आखरी घटना की तारीख से तीन महीने तक का समय पीडि़त के पास है।
क्या यह समय सीमा बढाई जा सकती है
यदि आंतरिक शिकायत समिति को यह लगता है की इससे पहले पीडि़त शिकायत करने में असमर्थ थी तो यह सीमा बढाई जा सकती है, पर इसकी अवधि और तीन महीनों से ज्यादा नहीं बढाई जा सकती है।
शिकायत कैसे की जानी चाहिए
शिकायत लिखित रूप में की जानी चाहिए। यदि किसी कारणवश पीडि़त लिखित रूप में शिकायत नहीं कर पाती है तो समिति के सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे लिखित शिकायत देने में पीडि़त की मदद करें। उदाहरण के तौर पर, अगर वह महिला पढ़ी लिखी नहीं है और उसके पास लिखित में शिकायत लिखवाने का कोई जरिया नहीं है तो वह समिति को इसकी जानकारी दे सकती है, और समिति की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे की पीडि़त की शिकायत बारीकी से दर्ज की जाए।
क्या पीडि़त की ओर से कोई और शिकायत कर सकता है
यदि पीडि़त शारीरिक रूप से शिकायत करने में असमर्थ है (उदाहरण के लिए यदि वह बेहोश है), तो उसके रिश्तेदार या मित्र, उसके सह-कार्यकर्ता, ऐसा कोई भी व्यक्ति जो घटना के बारे में जानता है और जिसने पीडि़त की सहमति ली है, अथवा राष्ट्रीय या राज्य स्तर के महिला आयोग के अधिकारी शिकायत कर सकते हैं।
यदि पीडि़त शिकायत दर्ज करने की मानसिक स्थिति में नहीं है, तो उसके रिश्तेदार या मित्र, उसके विशेष शिक्षक, उसके मनोचिकित्सक, उसके संरक्षक या ऐसा कोई भी व्यक्ति जो उसकी देखभाल कर रहे हैं, शिकायत कर सकते हैं। साथ ही कोई भी व्यक्ति जिसे इस घटना के बारे में पता है, उपरोक्त व्यक्तियों के साथ मिल कर संयुक्त शिकायत कर सकता है। यदि पीडि़त की मृत्यु हो चुकी है, तो कोई भी व्यक्ति जिसे इस घटना के बारे में पता हो, पीडि़त के कानूनी उत्तराधिकारी की सहमति से शिकायत कर सकता है।
शिकायत दर्ज करने के बाद क्या होता है
यदि महिला समाधान नहीं चाहती है तो जांच की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसे शिकायत समिति को 90 दिन में पूरा करना होगा।
झूठी शिकायतों से यह कानून कैसे निपटता है
यदि आंतरिक समिति को पता चलता है कि किसी महिला ने जान-बूझ कर झूठी शिकायत की है, तो उस पर कार्यवाही की जा सकती है।
ऐसी कार्यवाही के तहत महिला को चेतावनी दी जा सकती है, महिला से लिखित माफी मांगी जा सकती है या फिर महिला की पदोन्नति या वेतन वृद्धि रोकी जा सकती है, या महिला को नौकरी से भी निकाला जा सकता है।
सिर्फ इसलिए कि पर्याप्त प्रमाण नहीं है, शिकायत को गलत नहीं ठहराया जा सकता, इसके लिए कुछ ठोस सबूत होना चाहिए (जैसे कि महिला ने किसी मित्र को भेजे इ-मेल में यह स्वीकार किया हो कि शिकायत झूठी है)