प्रयागराज (ब्‍यूरो)। स्मार्ट सिटी व नगर निगम के अफसरों से पब्लिक का एक सवाल है। वह पूछना चाहती हैं कि क्या स्मार्ट सिटी में पार्किंग नहीं होती है? या फिर फुटपाथ को ही पार्किंग समझ लिया जाता है। पार्किंग को मैनेज न किये जाने के चलते शाम के वक्त इस एरिया में वाहन लेकर चलना किसी गुनाह के जैसा है। इस मुद्दे को हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान ले लिया है। कार्रवाई क्यों नहीं करते हैं कि मुद्दे पर पीडीए के वीसी को हाई कोर्ट में पेश होकर जवाब देना है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने बुधवार को सिविल लाइंस एरिया में पार्किंग और जाम की हकीकत परखी।

खर्च हुए करोड़ों और फायदा शून्य
सिविल लाइंस धरना स्थल से लेकर हनुमान मंदिर तक करोड़ों की लागत से रोड बनाई गई। सड़कों के किनारे दोनों तरफ फुटपाथ के साथ सर्विस लेन की व्यवस्था दी गई। पैदल चलने वालों को दिक्कत न हो। वाहनों के आवागमन में दिक्कत न हो और मेन रोड फ्री रहे। एकलव्य चौराहे से सुभाष चौराहे तक दोनों तरफ बनाए गए फुटपाथ पर रेलिंग भी लगा दी गई। ऐसे में जिस भी दुकान के सामने यह जगह है उस पर उसी का कब्जा है। अब ऐसे में पैदल यात्रियों को भी सड़क से होकर ही गुजरना पड़ रहा है।

प्लान और पैसा दोनों व्यर्थ
सड़क के दोनों तरफ फुटपाथ के साथ काफी जगह छोड़ी गई है। ताकि बाइक और हल्के वाहन मेन रोड पर न दिखें
यहां दिन रात सैकड़ों गाडिय़ां खड़ी रहती हैं। दिन में तो मेन रोड पर भी कारों की कतार दिखती है।
सर्वाधिक परेशान रोडवेज बस स्टैंड के पास है। यहां मॉल के ग्राहकों की गाडिय़ां फुटपाथ पर खड़ी कराई जाएगी। बची हुई जगह पर सवारी ढोने वाले कार चालकों का कब्जा रहता है।
जो थोड़ी बहुत जगह पैदल यात्रियों के लिए बची उस पर ई-रिक्शा चालकों का कब्जा रहता है।

क्या कहते हैं नगर निगम के अफसर
नाम नहीं छापने की शर्त पर नगर निगम के अफसर कहते हैं कि सिविल लाइंस में मल्टीलेवल सिर्फ एक पार्किंग हैं। वह भी पीडीए का है। नगर निगम की फिलहाल कोई कोई पार्किंग नहीं है। समस्या को देखते हुए महिला पालीटेक्निक व यात्रिक होटल के सामने खाली पड़े प्लाट में पार्किंग बनाने की प्रक्रिया चल रही है। प्रक्रिया कब तक पूर्ण होगी यह कह पाना मुश्किल है। समस्या तो है, हर विभाग को ध्यान देना होगा।

न किसी से मिलेंगे न कोई कुछ पूछेगा!
हालात पर पब्लिक के बीच उठ रहे सवालों का उत्तर तलाशते हुए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट रिपोर्ट नगर निगम नई बिल्डिंग स्थित स्मार्ट सिटी दफ्तर पहुंचा। क्लास के लगे दरवाजे को पुश करने पर पता चला कि डोर ऐसे नहीं खुलेगा। दरवाजे में हाई सिक्योरिटी सेंसर लगे हैं, जो सिर्फ विभागीय अफसरों व कर्मचारियों के इशारे पर ही खुलते हैं। कोई आम आदमी इस दरवाजे को पार नहीं कर सकता। एक कर्मचारी बोला बगल केबिन में बैठिये बुलाते हैं। थोड़ी देर बताया साहब अंदर काम कर रहे हैं। बाद में आना। अब सवाल यह उठता है कि शहर को स्मार्ट बनाने का जिम्मा उठाने वाले अफसरों द्वारा शहरियों से इतनी दूरी क्यों? क्या वह पब्लिक के सवालों से बचने की कोशिश और बरती गई मनमानी का उत्तर देने से भाग रहे हैं? अब इसमें क्या सच है। आप खुद तय करिए।

शहर के विकास में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रोड़, पार्किंग और लाइट व पाइन व्यवस्था का अहम रोल होता है। यहां स्मार्ट सिटी के नाम पर बेडौल सड़कें बना दी गईं। पॉश एरिया सिविल लाइंस तक में कहीं आवाम के लिए पार्किंग स्पेश नहीं है।
प्रो। पवन पचौरी, कुलभाष्कर डिग्री कॉलेज

हमारा मानना है कि स्मार्ट शहर के नाम पर इस शहर का का डेवलपमेंट के लिए बनाए गए नक्शे में ही दोष है। हमारा सवाल है कि स्मार्ट सिटी जिस नक्शे से फुटपाथ बनाकर रेलिंग लगा दिया। अब उसका जगह व पैसे का पब्लिक को फायदा क्या है।
गौरव मिश्रा, एडवोकेट हाईकोर्ट

स्मार्टसिटी के नाम पर सरकार की आंख में धूल झोकने का काम हुआ है। कार्यदायी संस्था विदेशी मॉडल कॉपी कर लाई। प्लान बनाते समय यहां लोकल की जरूरत व शहर के मूलभूत ढांचे पर गौर नहीं किया गया। पूरी तरह मनमानी और धन का दुरुपयोग हुआ है।
पंकज मिश्रा, यूपी हेड मार्केटिंग इलेक्ट्रानिक्स कंपनी

पार्किंग नहीं होने से आने वाले ग्राहकों को रोड पर गाडिय़ां पार्क करनी पड़ रही है। ट्रैफिक पुलिस उनकी गाडिय़ां उठा ले जाती है। इससे दुकानदारों का व्यापार प्रभावित हो रहा है। सिविल लाइंस जैसे एरिया में पार्किंग की अनदेखी मंशा पर सवाल है।
अनूप वर्मा, जिला अध्यक्ष महानगर उद्योग व्यापार मंडल