प्रयागराज ब्यूरो । एचआईवी ग्रस्त बच्चों को प्रापर दवाएं नहीं मिल रही हैं। इसकी शार्टेज बनी हुई है। इसकी जगह उन्हें वयस्क एचआईवी मरीजों की दवाएं दी जा रही है। यह हाल एसआरएन अस्पताल स्थित एआरटी सेंटर का है। दवाओं की कमी से जूझ रहे बच्चों के परिजन भी इस समस्या से परेशान हैं लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही है। जबकि बाजार में दवाएं हैं लेकिन इतनी महंगी हैं कि परिजन इसे खरीद नही सकते हैं।

क्या है मामला

हर गुरुवार एसआरएन अस्पताल के एआरटी सेंटर में बच्चों की ओपीडी होती है। लेकिन दवाएं देने के नाम पर दिक्कत का सामना मरीजों और उनके परिजनों को करना पड़ता है। बता दें कि पिछले दो साल से सेंटर में बच्चों की दवाओं की शार्टेज बनी हुई है। अक्सर दवाएं खत्म हो जाती हैं और इसकी जगह बच्चों को बड़ों की दवाएं देनी पड़ती हैं। जबकि नियमानुसार बच्चों की डोज अलग होती है। अगर बडों की अधिक डोज की दवाओं से उन्हें तोड़कर डोज दी जाती है तो इससे उनको नुकसान पहुंच सकता है।

डीबीएस जांच रिपोर्ट भी है बंद

इसी तरह से वर्तमान में एचआईवी ग्रस्त माताओं के बच्चों की जांच रिपोर्ट भी नही मिल पा रही है। इसे डीबीएस यानी ड्राई ब्लड सैंपल रिपोर्ट कहा जाता है। जब बच्चा पैदा होता है तो इस रिपोर्ट के आधार पर उसे दवा पिलाई जाती है। लेकिन जांच रिपोर्ट नही आने से उनका इलाज भी अधर में पड़ जाता है। यह रिपोर्ट दिल्ली एम्स से आती है। यह जांच 18 माह तक के बच्चों की चार बार की जाती है।

मरीजों को सरकार से चाहिए सुविधाएं

वर्तमान में प्रयागराज सहित आसपास के जिलों में 16 हजार एचआईवी के मरीज चिंहित हैं जिनका इलाज चल रहा है। इनको अन्य राज्यों की तरह यूपी में भी सुविधाओं की दरकार है। जिनमें से बच्चों का परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मरीजों का कहना है कि उन्हें दिल्ली की तरह मरीजों को प्रति माह एक हजार रुपए दिया जाना चाहिए। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार हो सके। इसी तरह गुजरात और मुंबई की तरह बस का भाड़ा और न्यूट्रिशन उपलब्ध कराया जाए। जिससे वह मरीजों के एलएफयू यानी लापता होने की नौबत न आए। हर साल कई मरीज जांच में पाजिटिव आने के बाद सुविधाओं के अभाव में लापता हो जाते हैं।

मार्केट में दवाएं हैं महंगी

ऐसा नही है कि मार्केट में एचआईवी या एड्स की दवाएं नही हैं लेकिन यह बहुत महंगी हैं। इनको खरीद पाना हर मरीज के बस की बात नही है। मरीजों का कहना है कि उन्हें कम से कम एक माह की दवा दी जानी चाहिए। जिससे वह आसानी से अपना इलाज करा सकें। क्योंकि हर साल इलाज और पोषण के अभाव में कई मरीजों की मौत हो जाती है। हालांकि सरकार की ओर से गल्र्स स्कूलों में अवेयरनेस कार्यकम भी चलाया जा रहा है। जिससे उनको एचआईवी या एड्स के खतरे से समय रहते बचाया जा सके।

कुछ समय पहले दवाओं की कमी हुई थी लेकिन अब यह सुचारू हो चुकी हैं। सभी मरीजों को दवाएं दी जा रही हैं। किसी भी मरीज की जांच रिपोर्ट रुकी नही है। अगर बच्चे आते हैं तो प्रापर जांच कराकर इलाज कराया जाएगा।

डॉ। शरद वर्मा, सीनियर कंसल्टेंट, एआरटी सेंटर एसआरएन अस्पताल प्रयागराज

मैं इस समय अवकाश पर चल रहा हूं। ऐसी कोई समस्या तो सामने नही आई है। अगर है तो उसे साल्व किया जाएगा।

डॉ। पीयूष सक्सेना, एचओडी, मेडिसिन विभाग एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज