सीबीएसई की ओर से 12वीं बोर्ड परीक्षा पैटर्न में बदलाव के प्रपोजल से संतुष्ट नहीं दिख रहे स्टूडेंट्स
रिजल्ट पर भी बड़ा असर दिखने की स्टूडेंट्स जता रहे संभावना
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PRAYAGRAJ: कोरोना महामारी के बीच बोर्ड परीक्षाएं कराना किसी जंग से कम नहीं है। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई की ओर से 12वीं बोर्ड परीक्षा के पैटर्न में बदलाव का प्रपोजल तैयार किया गया है। हालांकि इस पर फाइनल फैसला अभी होना है। लेकिन सीबीएसई के प्रपोजल को लेकर चर्चाएं भी तेजी से शुरू हो गई है। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने सीबीएसई की ओर से बोर्ड परीक्षा को लेकर तैयार प्रपोजल पर स्टूडेंट्स से बात करके उनकी राय जानी। जिसमें स्टूडेंट्स ने खुलकर अपनी बात रखते हुए एग्जाम टाइमिंग में बदलाव का सीधा असर रिजल्ट पर पड़ने की बात मान रहे हैं।
डेढ़ घंटे में बेस्ट परफार्मेस है मुश्किल
12वीं की बोर्ड परीक्षा डेढ़ घंटे किए जाने को लेकर स्टूडेंट्स का कहना है कि ये ठीक नहीं है। क्योंकि जब परीक्षा देने के लिए सेंटर पर जाना ही है, तो फिर डेढ़ घंटे की परीक्षा हो या तीन घंटे की। इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हालांकि स्टूडेंट्स की परफार्मेस पर इसका सीधा असर जरूर पड़ेगा।
जल्दबाजी में रहेंगे स्टूडेंट्स
तीन घंटे में स्टूडेंट्स बेहतर तरीके से प्रश्नों को समझकर उसका आंसर दे सकेंगे। जबकि डेढ़ घंटे में स्टूडेंट्स के अंदर जल्दी बाजी रहेगी। ऐसे में क्वैश्चन का आंसर गलत होने की अधिक संभावनाएं हैं। क्यों कि अभी तक ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान भी तीन घंटे के पेपर के हिसाब से ही स्टूडेंट्स ने पूरे साल तैयारी की है। अर्धवार्षिक व प्री बोर्ड के दौरान भी इसी प्रकार से पेपर दिया था। ऐसे में अचानक से पेपर के ठीक पहले ये बदलाव स्टूडेंट्स के माइंड को भी टेंशन में डालेगा। जिससे परीक्षा में बेस्ट देने में स्टूडेंट्स को दिक्कत आएगी।
आब्जेक्टिव से बेहतर है पुराने पैटर्न का पेपर
ऑब्जेक्टिव क्वैश्चन वैसे तो करने में आसानी होती है। लेकिन स्टूडेंट्स इसके लिए पहले से प्रैक्टिस होने की बात करते हैं। स्टूडेंट्स का कहना है कि परीक्षा की तैयारी के दौरान पूरे समय पुराने पैटर्न के पेपर के हिसाब से ही प्रैक्टिस की है। साथ ही पुराने पैटर्न के हिसाब से होने वाले पेपर में आब्जेक्टिव के साथ ही शार्ट क्वैश्चन, लॉग क्वैश्चन का आप्शन होता है। जिसमें स्टूडेंट्स अच्छे से प्रश्न के आंसर को समझा सकते है। अगर उसमें थोड़ी बहुत गलती होती भी है, तो नम्बर मिलते है। पूरे नम्बर नहीं कटते है। लेकिन आब्जेक्टिव में ऐसा नहीं होता है। आब्जेक्टिव में क्वैश्चन का आंसर एक शब्द में देना होता है। या तो आंसर सही होगा या गलत होगा। ऐसे में मार्क्स अधिक कटने की संभावना होगी। जिससे रिजल्ट खराब होने की संभावना रहेगी।
- स्कूल जा नहीं रहे हैं। ऑनलाइन कम समझ में आ रहा है। ऐसे में अचानक होने वाले बदलाव का सीधा असर रिजल्ट पर पड़ेगा। आप्शन में म्युजिक लिया है। उसमें ही करियर बनाना है। अगर उसका पेपर नहीं हुआ तो आगे एडमिशन कैसे होगा।
प्रीयेन्द्र मिश्रा
- पहले के पेपर के पैटर्न में मार्क्स अधिक मिलने का चांस होता है। आब्जेक्टिव में ऐसा नहीं होगा। हां ये ठीक है कि कुछ सब्जेक्ट के पेपर होंगे। जिससे घर से कम से कम निकलना होगा।
मनसवी सेवाल
- ऑनलाइन पढ़ाई के हिसाब से ये बदलाव का प्रपोजल ठीक हो भी सकता है और नहीं भी। हालांकि जो ब्रिलियेट बच्चे हैं। उनका रिजल्ट खराब होने के चांस ज्यादा होंगे। आब्जेक्टिव से बेहतर पुराने पैटर्न पर होने वाले एग्जाम स्कोरिंग होते है।
इशिता जायसवाल
- कोरोना को लेकर देखा जाए तो स्टूडेंट्स की सेक्योरिटी के हिसाब से बदलाव ठीक है। लेकिन नम्बर स्कोर करने को लेकर देखा जाए तो पुराने पैटर्न के पेपर में अच्छे मार्क्स मिलने की उम्मीद रहती है। जबकि आब्जेक्टिव में ऐसा नहीं हो पाएगा।
अर्पित यादव