प्रयागराज (ब्‍यूरो)। डाला छठ का व्रत रखने वाली महिलाएं सब कुछ सिर्फ अपने लिए नहीं करतीं। वह दूसरों के जीवन में आयी खुशियों के लिए छठी मइया का धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए 'कोसीÓ भराई भी करवाती हैं। कोसी वह महिलाएं भरवाती हैं जो खुद व्रत नहीं रखतीं लेकिन व्रत जैसे की नियम कानून को फॉलो करती हैं। उन्हें भी 36 घंटे तक इंतजार करना होगा है। कोसी पर नजर रखनी पड़ती है कि उसकी लौ बुझने न पाए। मंगलवार को इसकी भी लिस्ट व्रत रखने वाली महिलाओं ने आलमोस्ट तैयार कर ली थी। कोसी भरवाने की इच्छा रखने वाली महिलाएं भी उनके घरों पर पहुंचने लगीं जो व्रत रखने वाली हैं। वह भी व्रती महिलाओं का बराबरी से सहयोग करती हैं।

क्या होता है कोसी
कुसुम मिश्रा के पति वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं। वह जिला जज के पद से रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने इस साल कोसी भरवाने के लिए रसूलाबाद की रहने वाली भारती सिंह से सम्पर्क किया था। दोनों फैमिली काफी क्लोज हैं। भारती सिंह ने बताती हैं कि उनकी नातिन सात महीने में ही पैदा हो गयी थी। इसके चलते उसकी हालत बेहद खराब थी। डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया था। इलाज कराते हुए परेशान होने पर उन्होंने छठी मैया से नातिन के ठीक होने पर कोसी भरवाने की मन्नत मांगी थी। अब इस प्रकरण के एक साल बीत चुके हैं और उनकी नातिन भली चंगी है। इसके बाद उन्होंने इस साल कोसी भरवाने का फैसला लिया है। इसके लिए वह झूंसी में रहने वाली सीमा सिंह के घर पहुंची हुई हैं। सीमा सिंह मूलरूप से देवरिया जिले की रहने वाली हैं और ससुराल गाजीपुर के गहमर में है। वह 1990 में शादी होने के बाद से ही छठी का व्रत रखती चली आ रही हैं।

अबकी बार दूसरों के लिए
सीमा सिंह बताती हैं कि कोसी वे लोग भरवाते हैं जो कोई मुराद मांगते हैं और वह पूरी हो जाती है। अब वह वह अपने लिए बिना किसी मुराद के लिए कोसी भरती थीं। इस बार वह अपने लिए व्रत रख रही हैं लेकिन कोसी दो अन्य लोगों के लिए भरवाएंगी। वह बताती हैं कि कोसी भरवाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री उसी महिला को देनी होती है जिसकी मन्नत पूरी हुई होती है। कोसी भरवाने में दउरा, सूप, मिट्टी का घड़ा फल आदि इस्तेमाल होता है। इसके अलावा कोसी भरवाने वाली महिला खुद छह पूजा के लिए सामग्री तैयार किये जाने के समय मौजूद रहती है। इसमें इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के घड़े में होल होते हैं और किनारे दीप लगे हुए होते हैं। मुख्य दिया घड़े के भीतर रखा जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि वह लगातार तब तक जलता रहे जब तक कि उगते हुए सूर्य को अध्र्य देने का समय न आ जाय। इसे खरना के बाद ही प्रज्जवलित कर दिया जाता है। घर में पूरी रात इसी के इर्द गिर्द पूजन आदि होता है और कथा सुनी सुनायी जाती है।

छठी मइया ने पूरी की आरजू
भारती सिंह बताती हैं कि छह साल पहले उन्हें इस व्रत को उठाया था। पहली बार छठ का व्रत उनकी सास और अजिया सास ने रखना शुरू किया था। वह बताती हैं कि उनकी सास को दो बच्चे हुए और संयोग से दोनो ही अल्प समय में इस दुनिया से कूच कर गये। इससे घर का माहौल बेहद खराब हो गया था। परिवार के लोग ससुर जी की दूसरी शादी की बात करने लगे लेकिन मेरी सास इसके लिए तैयार नहीं हुईं। उन्होंने छठी मैया से मन्नत मांगी और साल दर साल व्रत रखती रहीं। वह बताती हैं कि छठी मैया ने सास के जीवन के अंधेरे को दूर किया और 19 साल बाद उनके पति का जन्म हुआ और वह भले चंगे हैं। इसके बाद से सास ने इस व्रत को छोड़ा नहीं। वह खुद बच्चे छोटे होने के चलते इस व्रत को नहीं रखती थीं लेकिन छह साल पहले व्रत उठाया तो अब तमाम लोग उनसे जुड़ गये हैं। उनके साथ ही झारखंड की रहने वाली अनुराधा सिंह ने भी संकल्प लेकर व्रत रखना शुरू किया था। अब दोनों उगते और डूबते सूर्य को अध्र्य देने के लिए साथ ही गंगा घाट पहुंचती हैं।

आज चंद्र दर्शन के बाद होगा खरना
डाला छठ का व्रत रखने वाली महिलाओं ने मंगलवार को नहाय खाय के साथ व्रत के नियमों का पालन शुरू कर दिया। बुधवार को वे चंद्र दर्शन के बाद खरना करेंगी। यानी उनकी व्रत की शुरुआत हो चुकी होगी। शाम को खुद के साथ परिवार के सदस्यों के लिए गुड़ मिश्रित खीर और देशी घी से बनी रोटी बनाएंगी। चांद का दर्शन होने के बाद वह इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगी। इससे पहले वह घर के पुरुषों के नाम से इसे निकालेंगी। सीमा सिंह बताती हैं कि खरना के दिन बनने वाला खीर प्रसाद घर के सभी पुरुष व्रती महिलाओं के ग्रहण कर लेने के बाद ग्रहण करेंगे और व्रत नहीं रखेंगे लेकिन व्रत के धर्म का पालन करेंगे।