प्रयागराज ब्यूरो प्रयागराज की रहने वाली जया वर्मा सिन्हा रेलवे बोर्ड की पहली महिला सीईओ और अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुई हैं। जया की इस सफलता ने प्रयागवासियों का मान बढ़ाया है। जया वर्मा 36 सालों से रेलवे में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनकी नियुक्ति की सूचना आने के बाद अल्लापुर में रहने वाले भाई जयदीप वर्मा के घर बधाई देने वाले पहुंचने लगे।
बलिया से प्रयागराज शिफ्ट हुआ परिवार
जया वर्मा के पिता विनोद बिहारी वर्मा बलिया जिले के सिकंदरपुर तहसील के बालूपुर गांव के रहने वाले थे। वह आइएएएस अधिकारी थे। मेघालय के एजी पद से रिटायर होने के बाद वह प्रयागराज आए और यहीं के होकर रह गए। जया के भाई जयदीप ने बताया कि हम दोनों की पैदाइश इलाहाबाद की है। जया की स्कूलिंग एसएमसी से हुई है। उन दिनों जया की गिनती मेधावी छात्रों में होती थी। जया ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से 1984 में बीएससी ऑनर्स का कोर्स पूरा किया। पीजी उन्होंने साइकोलॉजी सब्जेक्ट से किया। 1986 में मनोविज्ञान में पीजी का कोर्स कम्प्लीट होने के बाद उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर कंसंट्रेट करना शुरू कर दिया। इसका रिजल्ट 1987 में सामने आ गया जब उनका सेलेक्शन इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विसेज ऑफिसर के रूप में हो गया।

किशोर दा के गाने हैं फेवरेट
जयदीप बताते हैं कि जया एक कुशल अधिकारी होने के साथ ही फोटोग्राफर भी हैं। संगीत में उन्हें किशोर दा पसंद हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रो। केएन उत्तम बताते हैं कि जया शुरू से ही मेधावी रहीं। साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में एयू के आइसीटी चेयरमैन प्रो। आशीष खरे ने बताया कि यह इलाहाबाद युनिवर्सिटी के लिए भी बड़ा एचीवमेंट है। जया के पति नीरज सिन्हा 90 बैच के आइपीएस अधिकारी हैं और बिहार राज्य से डीजी सिविल डिफेंस हैं। उनकी एक बेटी भी है और वह वर्तमान में पढ़ाई कर रही है।

सिग्नलिंग प्रणाली से आईं चर्चा में
जया ओडिशा के बालेश्वर में हुए ट्रेन हादसे के बाद चर्चा में आयी थीं। उन्होंने मीडिया के सामने जटिल सिग्नलिंग प्रणाली के बारे में डिटेल शेयर किया था। वह इसी वर्ष एक अक्टूबर को रिटायर होने वाली हैं। बताया जा रहा है कि कार्यकाल समाप्त होने के दिन ही उन्हें फिर से नियुक्त किया जाएगा। जया चार वर्षों तक बांग्लादेश के ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग में रेलवे सलाहकार के रूप में भी काम किया है। इसी दौरान कोलकाता से ढाका तक मैत्री एक्सप्रेस का भी संचालन शुरू किया गया था।