प्रयागराज ब्यूरो । एक लाख रुपए की कीमत की बाइक लोग खरीद लेते हैं लेकिन एक हजार का हेलमेट लेने के पहले कई बार सोचते हैं। उनको यह भी नही पता कि रोड साइड बिकने वाले सस्ते और घटिया क्वालिटी के हेलमेट से उनकी जान भी जा सकती है। अक्सर एक्सीडेंट वाले केसेज में देखा जाता है कि हेलमेट की क्वालिटी खराब होने से बाइक सवार की जान चली जाती है।

पल भर में सामने आ गया सच

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने इस मामले में शनिवार को मार्केट का रुख किया। एसआरएन अस्पताल के नजदीक एमजी रोड पर सड़क किनारे कई हेलमेट की दुकानें लगी थीं। यहां पर मौजूद हेलमेट विक्रेता ने बातचीत में बताया कि आठ सौ रुपए कीमत में हेलमेट मिल जाएगा। इस पर रिपोर्टर ने उससे पैसा कम करने को कहा। थोड़ी देर में चार सौ रुपए में सौदा तय हो गया। यही पर मौजूद कुछ खरीदारों से रिपोर्टर ने बात की। उन्होंने बताया कि आखिर वह क्यों ब्रांडेड की जगह सस्ता और लोकल हेलमेट खरीद रहे हैं। पांच में से चार लोगां का कहना था कि हेलमेट केवल चालान और धूप से चेहरे को बचाने के लिए खरीद रहे हैं। इतनी सी बात के लिए हजार-पंद्रह सौ रुपए कौन खर्च करेगा?

लोकल हेलमेट से चली जाती है जान

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि कई बार एक्सीडेंट में हेलमेट लगाए हुए बाइक सवार की जान भी चली जाती है। इसका सीधा सा कारण होता है कि सस्ता और घटिया दर्जे का हेलमेट व्यक्ति की जान नही बचा पाता है। कई बार इसी हेलमेट की प्लास्टिक या मेटल टूटकर सिर में घुस जाता है। जिससे व्यक्ति की मौत हो जाती है। यही कारण है कि कंपनी के ब्रांडेड और आईएसआई मार्क वाले हेलमेट की यूज करने चाहिए।

ऐसे पहचाने असली-नकली में अंतर

- जिस पर आईएसआई मार्क हो और उसके ऊपर भारतीय मानक ब्यूरो के स्टैंडर्ड का नंबर लिखा हो तो वह हेलमेट असली माना जाता है।

- हेलमेट पर उसके नीचे सीएम या एल यानी उत्पाद के लिए कंपनी को जारी लाइसेंस नंबर लिखा होता है। ओरिजिनल हेलमेट की कसौटी का भी मानक होता है।

- ओरिजिनल हेलमेट का ऊपरी सतह काफी कठोर होती है। पक्की रोड पर पटकने के बावजूद उसका ऊपरी कवर डैमेज नहीं होता उसमें फिसलन अधिक होती है।

- लोकल हेलमेट के ऊपरी भाग पर प्लास्टिक और अंदर फॉम भरे होते हैं, जिसे ज्यादा तेज दबाने पर टूट भी सकता है, यह हेलमेट असली में नहीं होता है।

- असली हेलमेट बनाने वाली कंपनी कंडीशनिंग टेस्ट करती है, अल्ट्रावाइट रेडिएशन को भी चेक करती है। साथ ही ब्रांडेड हेलमेट में नमी और आघात का भी परीक्षण करती है। ताकि एक्सीडेंट के वक्त वर्जिनल हेलमेट बाइक सवारों का सिर सेफ करके जान बचा सकें। जबकि नकली हेलमेट में आईएसआई मार्क नहीं होगा, यदि होगा भी तो वह फेक और पेंटेड होगा।

बाल झडऩे की होती है समस्या

फिजीशियन डॉ। डीके मिश्रा कहते हैं कि लोकल हेलमेट लगाने से बाल झडऩे की समस्या भी होती है। इसमें लगे मेटल या प्लास्टिक बालों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी बनावट की वजह से हेलमेट में हवा भी कम पास होती है और बालों की जड़े पसीने से कमजोर होने लगती हैं। जिससे बड़ी संख्या में बाल बाहर आ जाते हैं। इसलिए हमेशा ब्रांडेड हेलमेट की लगाना चाहिए।

लोग थोड़े से पैसे बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। वह यह भी नही देखते कि लोकल और सस्ते हेलमेट के फटने से उनकी जान भी जा सकती है। लोगों में अभी इस पक्ष को लेकर जागरुकता की कमी है।

अभिषेक शुक्ला, अथराइज्ड हेलमेट विक्रेता प्रयागराज