प्रयागराज (ब्‍यूरो)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी को 'पागलÓ कहना असभ्य एवं अनुचित हो सकता है, लेकिन यह आइपीसी की धारा 504 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, 'ऐसा प्रतीत होता है कि यह लापरवाही से दिया गया भटका हुआ बयान था, इसका इरादा किसी व्यक्ति को सार्वजनिक शांति भंग करने या कोई अन्य अपराध करने के लिए उकसाने का नहीं हो सकता।

लापरवाही में होती हैं ऐसी टिप्पणी
कोर्ट ने कहा, 'भले ही ऐसे शब्दों का उच्चारण जानबूझकर अपमान के रूप में लिया जाता है, लेकिन मेरी राय में इसे इस हद तक नहीं माना जा सकता कि किसी भी व्यक्ति को शांति भंग करने के लिए उकसाया गया है.Ó यह टिप्पणी जस्टिस ज्योत्स्ना शर्मा ने की है। कहा है कि अक्सर अनौपचारिक माहौल में ऐसी टिप्पणियां लापरवाही में की जाती हैं। इसमें कोई आपराधिक आशय नहीं होता। शिकायतकर्ता वकील दशरथ कुमार दीक्षित ने सीजेएम वाराणसी कोर्ट के समक्ष याची संगीता जेके और 10 अन्य के खिलाफ आइपीसी की धारा 500 के तहत मानहानि का दावा किया। आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने उसे पागल व्यक्ति कहकर अपमानित किया था। परिवादी व गवाहों के बयान दर्ज किए गए। मजिस्ट्रेट ने धारा 504 के तहत तलब करने के लिए समन जारी किया।

सत्र न्यायालय से याचिका खारिज
इसे जिला न्यायाधीश वाराणसी के समक्ष पुनरीक्षण अर्जी में चुनौती दी गई, जो खारिज कर दी गई। दोनों आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। दलील दी गई कि घटना मई 2017 की है। कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि बैठक में कई अन्य लोगों के सामने उसने कहा कि यह व्य1ित (शिकायतकर्ता) पागल है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लापरवाही से दिया गया बयान था। इरादा अपराध के लिए उकसाना नहीं था। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का आदेश रद कर दिया।