प्रयागराज (ब्‍यूरो)। पिछले वर्ष जवानों के सुसाइड की कई चर्चित घटनाएं हुईं। गुरुवार रात फिर सीआरपीएफ के एक जवान ने सुसाइड किया था। उसके पास से मिले नोट में सुसाइड का कारण पारिवारिक कलह बताया गया था।

16 मई 2020
थरवई एरिया के पंडि़ला स्थित सेंटर प्रिमाइस में सीआरपीएफ के जवान विनोद यादव ने टाइप टू क्वार्टर नंबर 221 में फांसी लगाकर सुसाइड किया था। सुसाइड से पहले उसने अपने लाइसेंस पिस्टल से पत्नी विमला, बेटे संदीप और बेटी सिमरन को गोलियों से भून दिया था। इसके बाद क्वार्टर में खुद भी फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया था। जवान के सुसाइड की यह घटना आज भी लोग भुला नहीं पाए हैं। वारदात के बाद पुलिस की छानबीन में जो बातें सामने आई थीं उसमें पारिवारिक कलह ही थी। वह मेजा के सिरसा का रहने वाला था।

20 सितंबर 2021
खुल्दाबाद एरिया के जीआरपी लाइंस में सिपाही चिंतामणि यादव ने खुद की कनपटी पर सरकारी रिवाल्वर से गोली मारकर सुसाइड कर लिया था। जीआरपी लाइंस में हुई घटना से महकमे में हड़कंप मच गया था। चिंतामणि यादव जिले के माण्डा क्षेत्र स्थित चकडीहा का रहने वाला था। उसकी तैनाती कानपुर जिले में थी। वह ट्रेन सुरक्षा ड्यूटी में यहां आया हुआ था। घटना सुबह उस वक्त हुई जब वह नहाने के लिए जा रहा था।

12 नवंबर 2021
बम्हरौली एयरफोर्स में तैनात जवान एलएसी सागर उज्ज्वल ने भी खुद को गोली से उड़ा लिया था। घटना उस वक्त हुई थी जब वह ड्यूटी कर रहा था। बताया गया था कि जिस गन को लेकर वह ड्यूटी दे रहा था उसी से खुद को शूट भी किया था। इस वारदात के बाद महकमे में हड़कंप मच गया था। एयरफोर्स के जवान के सुसाइड की खबर पर पुलिस अफसर भी पहुंचे थे। हालांकि प्रकरण एयरफोर्स का था, लिहाजा पुलिस इस मामले में बहुत छानबीन नहीं की।

28 दिसंबर 2021
को भी पंडि़ला स्थित सीआरपीएफ कैंप के बैरक में जवान दिलीप सिंह पुत्र दीनानाथ ने भी सुसाइड कर लिया था। सूत्र बताते हैं कि पोस्टमार्टम हाउस में उसके कपड़े की जेब में एक सुसाइड नोट मिला था। जिसमें उसने सुसाइड का कारण पारिवारिक वजह बताई गई थीं। अब वह समस्या क्या थी यह बात जांच के बाद ही सामने आएगा। हालांकि थरवई पुलिस के मुताबिक सुसाइड से दो दिन पूर्व ही वह अवकाश से वापस लौटकर आया था।

इस तरह बढ़ जाता है डिप्रेशन
सुसाइड कोई आम पब्लिक करे या खास। सबसे के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है
चूंकि जवान ज्यादातर घर व परिवार से बाहर रहते हैं, ऐसे में उनकी लाइफ एक दायरे में बंध जाती है
उनके आसपास विभागीय लोगों के अलावा कोई ऐसा दोस्त या परिजन नहीं होते जिससे खुलकर बातें कर सकें
ऐसे कोई बात हो जाने पर उनका दिमाग उसी पर टिका रहता है, उस मसले से माइंड का सेटअप चेंज नहीं हो पाता
ऐसी स्थिति में वह डिप्रेशन में चले जाते हैं, जो खुद को नहीं संभाल पाते वही इस तरह के कदम उठाते हैं

घर हो या दफ्तर, हर जगह बड़ों को चाहिए कि वह अपने से छोटे कर्मचारियों या सदस्यों पर नजर रखें। झुंझलाहट या गुमशुम होने की दशा में उनसे बातें करें। समस्या पूछें और उसे हल करने की कोशिश करें। हल नहीं कर पा रहे तो समझाएं और हौसला बढ़ाएं। उसे हतोत्साहित नहीं करें।
डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक