प्रयागराज ब्यूरो । शहर में खून देने वाले महादानियों की जबरदस्त कमी है। वरना बेली ब्लड बैंक का दामन यूं खाली न हो जाता। सोमवार को यहां केवल दो यूनिट ब्लड बचा था। जिसके बाद मरीजों के बीच खलबली मच गई। उनको एएमए सहित दूसरे ब्लड बैंकों का चक्कर काटना पड़ा। उधर, हॉस्पिटल प्रशासन का कहना है कि ब्लड डोनेशन की कमी होने से यह क्राइसिस हो रही है।

बदले में नही देना चाहते ब्लड

बताया जाता है कि बेली ब्लड बैंक की क्षमता तीन सौ यूनिट की है लेकिन सोमवार को यहां केवल दो यूनिट ब्लड ही बचा था। जब इस बारे में अस्पताल प्रशासन से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि लोग यहां ब्लड लेने आते हैं लेकिन उनके पास डोनर नही होता है। लोग अपने सगे संबंधियों को भी ब्लड नही देना चाहते हैं। इसकी वजह से अक्सर क्राइसिस हो जाती है। इस बार मामला अधिक गंभीर हो गया है। ऐसे में इमरजेंसी वार्ड में भर्ती मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ा। कई मरीज तो इंकार सुनकर वापस लौट गए। उनको ब्लड के लिए काल्विन, एसआरएन अस्पताल समेत एएमए ब्लड बैंक में लाइन लगानी पड़ी।

कोरोना काल से स्थिति खराब

ऐसा नही है कि दूसरे ब्लड बैंकों की स्थिति भी अच्छी है। एसआरएन अस्पताल के ब्लड बैंक में सोमवार को महज 25 यूनिट ब्लड था। यह इस ब्लड बैंक की क्षमता के आगे कुछ भी नही है। क्योंकि यह मंडलीय हॉस्पिटल है और यहां पर पूर्वांचल के कई जिलों से मरीज रेफर होकर आते हैं। हालांकि काल्विन अस्पताल में सोमवार को 85 यूनिट ब्लड मौजूद था। एसआरएन अस्पताल प्रशासन का कहना था कि कोरोना काल के बाद से यही स्थिति बनी हुई है। खून देने वालों की बहुत अधिक कमी हो गई है।

इनको है सबसे ज्यादा परेशानी

सरकारी गाइड लाइन कहती है कि गर्भवती महिलाएं, थैलीसीमिया, कैंसर आदि के मरीजों को बिना डोनर ही ब्लड उपलब्ध कराया जाना चाहिए। लेकिन बेली अस्पताल में भर्ती इन बीमारियों के मरीजों को सोमवार के खासी परेशान हुई। मजबूरी में उनको दूसरे ब्लड बैंकों में भेजा गया है। बता दें कि बेली अस्पताल दो सौ बेड का है और इस सीजन में यहां लगभग सभी बेड भरे हुए हैं।

खून देने से शरीर को होता है फायदा

भारत समेत कई देशों में ब्लड डोनेशन कर चुके रक्तदाता राजीव मिश्रा कहते हैं कि इससे शरीर को नुकसान नही है। लोगों को अपनी अवधारणा बदलनी होगी। जबकि ब्लड देने से बॉडी को फायदा होता है। सबसे पहले तो ब्लड देने के बाद शरीर में खून बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है और रेड ब्लड सेल्स की संख्या में बढ़ोतरी होती है। बॉडी में तीन माह के भीतर नया ब्लड बन जाता है जो पूरी तरह से फ्रेश होता है। वह कहते हैं कि एक यूनिट ब्लड देने से आप एक नही बल्कि चार-चार जान बचाते हैं। ब्लड के कम्पोनेंट अलग करके मरीजों को चढ़ाए जाते हैं। महीने में दो बार प्लेटलेट दिया जा सकता है जो कैंसर मरीजों के काम आती है। राजीव अब तक 88 बार ब्लड डोनेट कर चुके हैं और 8 बार प्लेटलेट दे चुके हैं।

लोग ब्लड डोनेशन नहीं करते हंै, इसकी वजह से ब्लड बैंक में सोमवार को महज दो यूनिट ही बचा है। लोग लोग ब्लड लेने आ रहे हैं उनको स्पष्ट डोनेशन के लिए कहा जा रहा है। यूनिट बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।

डा। एमके अखौरी, अधीक्षक, बेली अस्पताल