प्रयागराज (ब्‍यूरो)। इसी महीने 12 अक्टूबर को पुलिस ने खून की ब्लैक मार्केटिंग करने वाले गैंग को पकड़ा है। इसमें एक दर्जन लोग गिरफ्तार हुए। यह जरूरतमंद लोगों से अधिक पैसे लेकर वैन में ब्लीडिंग करा लेते थे। बदले में किसी भी हॉस्पिटल का लेबल लगाकर उसे सेल करते थे। पैकेट पर बेली अस्पताल का फेक लेबल लगा 128 यूनिट प्लेटलेट जब्त किया गया। इसे जांच के लिए लैब भेजा गया है। रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा कि यह फेक कम्पोनेंट है या प्लेटलेट।

प्लेटलेट लेते समय इन चीजों का रखे ख्याल
प्लेटलेट की बढ़ती डिमांड को देखते हुए लोगों को एक बात खास ख्याल रखना होगा कि वह प्लेटलेट को आथराइज्ड ब्लड बैंक से ही लें। इसके अलावा कुछ चीजों का जरूर ध्यान दें-
प्लेटलेट बैग के साथ रिएक्शन फार्म का पेपर भरवाया जाता है।
प्लेटलेट को हिलाने पर कभी झाग नहीं बनता है।
180 एमएल वाले एक बैग में 30 से 35 एमएल ही प्लेटलेट होता है।
बैग में हमेशा ब्लड बैंक की ओर से हाथ से ग्रुप लिखा जाता है।
लेबल पर कभी भी पीएलटी नही लिखा जाता है। प्लेटलेट का अपना एक कोड है जो लिखा जाता है।

कैसे निकाला जाता है प्लेटलेट
प्रदीप पांडे को जो प्लेटलेट चढ़ाया गया है वह उसका बैग सिंगल ब्लड बैग है जो 6 से 7 साल पहले बंद हो चुका है। वर्तमान में तीन बैग एक साथ मिलते हैं। इनमें एक में आरबीसी, दूसरे में प्लेटलेट और तीसरे में प्लाज्मा निकाला जाता है। मरीज को उसकी जरूरत के मुताबिक कम्पोनेंट चढ़ाया जाता है। लेकिन जितने भी फेक कम्पोनेंट मिले हैं उनमें इस बैग का यूज नही किया गया है।

ऐसे भी हो सकती है ब्लड क्लाटिंग
एक्सपट्र्स का कहना है कि प्लेटलेट को बॉडी से निकालने के बाद उसे मशीन इस तरह से रखा जाता है कि वह हिलता रहे। क्योंकि ठहर जाने पर उसमे क्लाटिंग होने लगती है और इसे चढ़ाने से बॉडी में भी ब्लड क्लाटिंग अर्थात खून के थक्के जम सकते हैं। जब ब्लड बैंक से तीमारदार प्लेटलेट लेकर जाता है उसे कहा जाता है कि इसे हिलाते रहिए और अस्प्ताल में इसे जितनी जल्दी हो सके मरीज को चढ़ा दिया जाए।

एसआरएन अस्पताल में भी मिलता है सिंगल डोनर प्लेटलेट
बता दें कि केवल एक मरीज के ब्लड से छह से सात यूनिट प्लेटलेट बनाने की तकनीक एसआरएन अस्पताल के ब्लड बैंक में भी मौजूद है। सिंगल डोनर प्लेटलेट को प्लाज्मा अफरेसिस मशीन से कराया जाता है। इसे कोरोना के समय खरीदा गया था और अब इसका यूज डेंगू संक्रमण के दौरन किया जा रहा है। जिसकी कास्ट सरकार ने आठ हजार रुपए निर्धारित की है। इससे बनी प्लेटलेट से मरीज को अधिक फायदा होता है।

मार्केट में घूम रहे हैं फ्रॉड
एक्सपट्र्स का कहना है कि मार्केट में इस समय तमाम फ्रॉड घूम रहे हैं। प्रयागराज में रोजाना पांच सौ यूनिट अधिक की डिमांड है और बदले में महज 350 से 400 यूनिट का प्रोडक्शन हो रहा है। ऐसे में कुछ लोग ब्लड बैंक या नर्सिंग होम्स से संपर्क कर ऊंचे दामों पर प्लेटलेट की जगह फेक कम्पोनेंट बेच रहे हैं जो हूबहू प्लेटलेट की तरह नजर आता है। इसको चढ़ाने से मरीज की जान भी जा सकती है। किसी भी हाल में ऐसे लोगों से प्लेटलेट नही लेना चाहिए।

अगर कोई कहे कि प्लेटलेट के बैग में मुसम्मी का जूस या कुछ और भरकर बेचा जा रहा है तो यह मुश्किल है। बैग के भीतर कुछ भी भरना आसान नहीं है। जो लोग फेक कम्पोनेंट बेच रहे हैं उनकी करतूत का खुलासा प्लेटलेट की जांच के बाद ही हो सकेगा। फिलहाल लोग सावधानी बरतें और जल्दबाजी में किसी बाहरी व्यक्ति से प्लेटलेट या ब्लड कतई न खरीदें।
डॉ। वत्सला मिश्रा
एचओडी, पैथोलाजी विभाग, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज