प्रयागराज ब्यूरो ।बद्दीक मारवाड़ी गैंग से जो डर गया वो बच गया। जो भिड़ गया वो मार दिया गया। इस गैंग के लिए घटना के वक्त माल असबाब मायने नहीं रखता। आमतौर पर डकैती डालने वाले गिरोह खून खराबे से बचते हैं। उनकी नजर में केवल नकदी और जेवरात ही रहता है। मगर जब ये गैंग डकैती करने पहुंचता है तो फिर इसके सिर खून सवार रहता है। इस दौरान विरोध करने वाले को सजा में मौत दे दी जाती है। वहीं, डर जाने वाले छोड़ दिया जाता है। उसे सिर्फ इतनी ही चोट पहुंचाई जाती है जितने पर वह विरोध न कर सके।
बगैर कारण मार देता है ये गैंग
बद्दीक मारवाड़ी गैंग बगैर कारण ही लोगों को मार देता है। नशे में धुत होकर घटना को अंजाम देने पहुंचने वाले इस गैंग के सामने अगर कोई विरोध हुआ तो फिर विरोध करने वाली मौत तय हो जाती है। हेतापट्टी कांड में भी यही हुआ। चौकीदार के पास कुछ भी नहीं था लूटने के लिए लेकिन उसने आवाज लगा दी थी। जिस पर डकैतों के सिर खून सवार हो गया। आमतौर पर डकैती डालने वाले डकैतों की नजर केवल जेवर और नकदी पर होती है। मगर इस गैंग के लिए नकदी और जेवर सेकेण्डरी मैटर होता है। चौकीदार रामकृपाल ने डकैतों की आहट पाने पर आवाज लगा दी, जिस वजह से उसे मार डाला गया। जबकि चौकीदार के पास लूटने के लिए कुछ भी नहीं था। यही हाल अशोक का हुआ। अशोक ने विरोध किया तो उसे ताबड़तोड़ वार कर मौत के मुंह में पहुंचा दिया गया, ये तो गनीमत रही कि अशोक की जान बच गई। जबकि भाई संतोष केसरवानी और उसकी पत्नी आरती डकैतों को देखते ही गिड़गिड़ाने लगे जिस पर दोनों को केवल जख्मी किया गया। जबकि उनके बच्चों को खरोच भी नहीं आई।