प्रयागराज (ब्‍यूरो)। भगवान श्रीराम की 22 जनवरी को अयोध्या में तैयार भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी में पूरे देश में जश्न का माहौल है। यह वही अयोध्या का मंदिर है जहां पर आतंकियों ने इंसान ही नहीं इंसानियत का भी लहू बहाया था। पांच जुलाई 2005 को अयोध्या में हुए विस्फोट को टीस आज जश्न मना रहे लोगों के जेहन में है। मानवता का पैगाम देने वाले प्रभु राम के मंदिर में उस वक्त हुए विस्फोट से पूरी दुनिया हिल गई थी। सुरक्षा व्यवस्था में तैनात रहे पीएसी व पुलिस के जांबाज जवानों ने विस्फोट के बाद पांच आंतकियों को मौत के घाट उतार दिया था। दर्शन के लिए दो आम नागरिक इस विस्फोट में मारे गए थे। खैर इस विस्फोट कांड के चार आतंकियों को इलाहाबाद अब प्रयागराज डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के विशेष न्यायाधीश एससीएसटी ने आजीवन कारावास की सुजा सुनाई थी। विस्फोट कांड से जुड़े आरोपितों के खिलाफ अदालत से मिली यह पहली जीत बताई जाती है। इस पूरे केस की पैरवी डीजीसी गुलाबचंद्र अग्रहरि की ओर से की गई थी।

05 जुलाई 2005 को अयोध्या में हुआ था विस्फोट
05 आतंकियों को मौके पर मार गिराया था जवानों ने
02 पब्लिक की विस्फोट में हो गई थी मौत
08 दिसंबर 2006 को अयोध्या से ट्रांसफर होकर आया था डिस्ट्रिक्ट कोर्ट
04 आतंकियों को 18 जून 2019 को यहां हुआ था आजीवन कारावास
14 पुलिस अधिकारियों ने दी थी सुनवाई के दौरान अपनी गवाही
471 डेट पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने सुनाया था फैसला
03 बार सीआरपीसी 313 के तहत हुआ था आरोपितों का बयान
428 प्रश्न विद्वान अधिकारियों के द्वारा पूछे गए थे आरोपितों से
63 गवाह डीजीसी ने विशेष कोर्ट एससीएसटी में किए थे पेश
187 पेज का हस्तलिखित बहस डीजीसी किए किए थे दाखिल
01 आरोपित मो। अजीज यहां साक्ष्यों के अभाव में छूटा था
06 हजार 56 पेज का अजीज के विरुद्ध अपील के लिए शासन को भेजा था प्रस्ताव

जानिए क्या था पूरा विस्फोट कांड
श्रीराम की अयोध्या को दहलाने वाले दोषियों का केस की सुनवाई अयोध्या की कोर्ट में ही चल रही थी। जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी बताते हैं कि आठ दिसंबर 2006 को उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश पर यह केस इलाहाबाद अब प्रयागराज कोर्ट में ट्रांसफर होकर आया था। वह कहते हैं कि अयोध्या विस्फोट कांड से जुड़ी फाइलें प्राप्त हुई तो पता चला कि पांच जुलाई 2005 को वहां हुए विस्फोट में पाकिस्तान का आतंकी संगठन लस्कर तोएबा के एरिया कमांडर कारी का हाथ था। बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला लेने के उद्देश्य से यह विस्फोट किया गया था। विस्फोट के वक्त अयोध्या में 11वीं बटालियन पीएसी सीतापुर के दल नायक कृष्ण चंद्र सिंह तैनात थे। उन्हीं के जरिए अयोध्या थाने में दर्ज कराया गया था। वह इस केस के वादी हैं। इस घटना के विवेचक निरीक्षक डीएल, केएल द्विवेदी व राम जन्मभूमि सर्किल के सीओ अजीत सिंह समेत सात पुलिस अधिकारी थे। सीओ अजीत कुमार सिंह के द्वारा ही चार्जशीट कोर्ट में पेश की गई थी। विवेचकों के जरिए कोर्ट को बताया गया था कि मौके पर जवानों के जरिए मुठभेड़ में पांच आतंकी मारे गए थे। जबकि विस्फोट की चपेट में आने से अयोध्या टूरिस्ट गाइड रमेश पांडेय व लोकल की ही शांती देवी की मृत्यु हई थी। इस तरह कुल अयोध्या विस्फोट कांड में आरोपित समेत सात लोगों मारे गए। इतना ही नहीं ड्यूटी पर रहे पुलिस व पीएसी के कुल मिलाकर सात जवान घायल भी हुए थे। अयोध्या विस्फोट कांड के बाद जवानों के जरिए मौके से कई हाईटेक असलहे बरामद किए गए थे। जिसमें पांच एके 47 सहित चाइनीज पिस्टल व ग्रेनेड बम आदि शामिल थे।

इन्हें हुई थी आजीवन कारावास
अयोध्या विस्फोट कांड केस यहां ट्रांसफर होने के बाद विशेष न्यायाधीश एससीएसटी
की अदालत में सुनवाई शुरू हुई।
बताते हैं कि सभी आतंकी यहां नैनी जेल में थे और वहीं जेल में ही सुनवाई हुई थी। ऐसा इसलिए क्योंकि आतंकियों को कोर्ट लाने पर जनाक्रोश की संभावना हुआ करती थी।
इस केस की सुनवाई विशेष न्यायाधीश एसटीएसटी अतुल कुमार गुप्ता, प्रेम नाथ, बीएम गुप्ता, सुरेंद्र सिंह व न्यायाधीश दिनेश चंद्र के द्वारा की गई थी।
डीजीसी कहते हैं कि न्यायाधीश सुरेंद्र सिंह मौजूदा समय में हाईकोर्ट इलाहाबाद में न्यायाधीश के पद पर कार्यरत हैं।
बताते हैं कि विशेष जज एसटीएसटी दिनेश चंद्र के द्वारा अयोध्या विस्फोट के चार आतंकियों आसिफ इकबाल उर्फ फारूक,
डॉ। इरफान, मो। शकील, मो। नसीम के जरिए पर्याप्त साक्ष्यों व गवाहनों के एवं सुबूतों के आधार पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
इस सजा के साथ उनपर कुल दो लाख 40 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगा था। सजा के बाद सभी नैनी जेल भेज दिए गए थे।
बाद में उच्च न्यायालय के जरिए इन चारों को इस शर्त पर जमानत दी गई कि वे अपने थाने पर बराबर हाजिरी लगाते रहेंगे।
चारों को फांसी की सजा दिलाने के लिए डीजीसी ने अपील के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था।
वह बताते हैं कि यह केस जितना बड़ा था उससे कहीं ज्यादा इसकी पैरवी करना चैलेंज था।
आरोपित इरफान ने ही दोस्तों संग अयोध्या में विस्फोट करने वाले आतंकियों को पनाह दिया था और रेकी में मदद की थी।

सुनवाई के लिए लगी थी 471 डेट

अयोध्या विस्फोट कांड में बतौर आरोपित मो। अजीज का नाम भी आया था। मगर केस यहां विशेष अदालत एससीएसटी में आने के बाद सुनवाई के दौरान छूट गया था। उसे सजा दिलाने के लिए डीजीसी के द्वारा छह हजार 56 पेज की संलग्नक सहित अपील करने के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। बताते हैं कि इस केस की सुनवाई के लिए कुल 471 डेट लगी थी। जिसमें 14 पुलिस कर्मियों की भी गवाही हुई थी। तीन बार बयान हुए जिसमें करीब 424 प्रश्न पूछे गए थे। डीजीसी के द्वारा 63 गवाह पेश किए गए थे।

अयोध्या में विस्फोट कांड केस की सुनवाई प्रयागराज विशेष कोर्ट एससीएसटी में हुई थी। चार आरोपितों को साक्ष्यों व सुबूतों के आधार पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। पूरे केस की पैरवी मेरे द्वारा की गई थी। यह पहला केस था जिसमें हमने हाथ से लिखकर 187 पेज की बहस कोर्ट में दाखिल किया था। हालांकि उच्च न्यायालय द्वारा आरोपितों को सशर्त जमानत दी गई है।
गुलाबचंद्र अग्रहरि
जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी