Students में थी नाराजगी

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने फैसला तो ले लिया लेकिन इसके असर के बारे में ऑफिसर्स ने नहीं सोचा। रोज पहुंचने वाली छात्रों की भीड़ और प्रोविजनल सर्टिफिकेट के इस्तेमाल की मजबूरी के चलते यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन पर दबाव बना हुआ था कि वह अपने फैसले में संशोधन करे। फैसले में संशोधन न होने की स्थिति में छात्रों के कॅरियर पर भी प्रभाव पडऩे का अंदेशा होने लगा था। प्रोविजनल सर्टिफिकेट के लिए आने वाले किसी छात्र के एडमिशन का मामला फंस रहा था तो कोई अपनी नौकरी को लेकर परेशान था।

तो कन्वोकेशन कराना हो जाता मजबूरी

परीक्षा विभाग में पहुंच रहे स्टूडेंट्स की कम्प्लेन थी कि अगर एयू हर साल कन्वोकेशन करवाता तो कोर्स कम्प्लीट होने कुछ ही दिनों बाद डिग्री मिल जाती। कन्वोकेशन न कराना यूनिवर्सिटी की प्राब्लम है न की उनकी। फिर यूनिवर्सिटी की गलती की सजा वह क्यों भुगतें? छात्रों के इन सवालों के चलते यूनिवर्सिटी प्रशासन पर हर साल कन्वोकेशन आयोजित करने का प्रेशर बनने लगा था। सूत्रों के अनुसार फैसला बदलने की एक और बड़ी वजह डिग्रियों के तैयार होने में लगने वाला समय भी है। इसमें लगने वाले समय के चलते छात्रों को अच्छी खासी परेशानी का सामना करना पड़ता था।

बताएं क्यों चाहिए provisional certificate

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्र हित को देखते हुए प्रोविजनल सर्टिफिकेट फिर से देने का फैसला तो कर लिया है लेकिन इसके साथ एक नया प्रावधान भी जोड़ा है। नए प्रावधान के मुताबिक प्रोविजनल के लिए आवेदन करने वाले छात्र को बताना होगा कि उनके लिए यह सर्टिफिकेट क्यों जरूरी है। यह बता पाने में असमर्थ रहने वाले छात्र को यह सुविधा नहीं मिलेगी। बता दें कि स्टूडेंट्स को ओरिजनल डिग्री न मिलने की स्थिति में प्रोविजनल सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। इसकी वैधता छह महीने होती है।

प्रोविजनल सर्टिफिकेट दिए जाने का डिसीजन छात्र हित को देखते हुए बदला गया है। फिर भी इसे जारी करने से पहले देखा जाएगा कि किसी स्टूडेंट के लिए यह कितना जरूरी है।

-प्रो। एचएस उपाध्याय,

एग्जामिनेशन कन्ट्रोलर