प्रयागराज (ब्यूरो)।वक्त का तकाजा देखिए। जिसकी एक आवाज पर हजारों लोग इक_ा हो जाते थे। इतना बड़ा गैंग मरने मारने पर उतारु हो जाता था। चालीसवें पर उसकी कब्र को फूल भी नसीब नहीं हुए। चकिया कब्रिस्तान में सन्नाटा पसरा रहा। हालांकि ऐहतियातन पुलिस ने कब्रिस्तान के इर्दगिर्द चौकसी बरती। पुलिस को उम्मीद थी कि भीड़ आ सकती है, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
15 अप्रैल को अतीक और अशरफ की हत्या हुई थी। दोनों को चकिया स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था। बृहस्पतिवार को दोनों का चालीसवां था। घटना को लेकर आम लोगों में कोई विरोध जैसी बात नहीं हुई इसके बावजूद पुलिस को शक था कि चालीसवें के रोज दोनों की कब्र पर अतीक के चाहने वाले, नात रिश्तेदार फातिहा पढऩे या फूल चढ़ाने आ सकते हैं। ऐसे में पुलिस ने कब्रिस्तान के इर्दगिर्द नजर जमा रखी थी। मगर पूरा दिन गुजर गया। रोज की तरफ कब्रिस्तान में सन्नाटे का माहौल था।
और गुजर गया चालीसवां
माफिया अतीक और अशरफ की मौत को चालीस दिन गुजर गए। जानकारों की मानें तो अपनों की मौत के बाद परिजन कब्र पर फूल चढ़ाने और फातिहा पढऩे जाते हैं। मगर अतीक अशरफ के साथ ऐसा नहीं रहा। बृहस्पतिवार को दोनों का चालीसवां बेहद खामोशी के साथ गुजर गया। इन चालीस दिनों में कोई भी उन दोनों की कब्र पर फूल चढ़ाने नहीं पहुंचा।

पुलिस प्रशासन का ऐसा खौफ कभी नहीं दिखा
जीते जी अतीक ने अपनी जो पैठ लोगों के बीच बनाई थी, उसका असर उसकी मौत के साथ ही खत्म हो गया। पुलिस प्रशासन का ऐसा खौफ रहा कि बड़ी संख्या में समर्थक होने के बाद भी अतीक अशरफ की कब्र तक कोई भी नहीं गया। उमेश हत्याकांड में चल रही कार्रवाई से सहमे लोग शायद ही अब अतीक अशरफ से अपना नाम जोडऩा चाहें। दोनों से केवल अपराधी नहीं आम लोग भी जुड़े थे। अपराधी तो अपनी जान बचाते भागे फिर रहे हैं, लेकिन वो आम लोग जो अतीक को नेता मानते थे। उसका भाषण सुनने आते थे। उसके समर्थन में नारे लगाते थे। वे भी अब दोनों भाई से दूर चुके हैं। जिसका नतीजा रहा कि चालीसवां बेहद सन्नाटे के बीच गुजर गया।

शानों शौकत काम न आई
आम तौर पर किसी की मौत होने पर लोग अपनें संबंधों की खातिर कब्र पर फातिहा पढऩे, फूल चढ़ाने जाते हैं। भले ही अतीक और अशरफ ने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा शानों शौकत में गुजारी हो, मगर मौत के बाद दोनों की कब्र को फूल भी नसीब नहीं हुए। अतीक और अशरफ को मौत के बाद उनकी शानों शौकत कोई काम न आई।

शाइस्ता का नहीं चला पता
चालीसवें को लेकर पुलिस सक्रिय थी। पुलिस ने सूत्रों को दौड़ा रखा था कि चालीसवें पर कोई न कोई आयोजन जरुर होगा। ऐसे में शाइस्ता तक पहुंचने में आसानी होगी। चालीसवें के आयोजन को लेकर शाइस्ता सक्रिय होगी तो कोई न कोई उसकी गलती पुलिस की राह आसान कर देगी, लेकिन शाइस्ता की कोई खबर पुलिस को नहीं लगी।