प्रयागराज (ब्यूरो)। एयरफोर्स से रिटायर्ड होने के बाद शंभूनाथ इंजीनियरिंग कॉलेज में जॉब कर रहे नवेंद्र कुमार श्रीवास्तव की दो बेटियां है। यशस्वी उनकी छोटी बेटी है। वह मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गई थी। लेकिन युद्ध होने पर अपने घर वापस लौट आई है। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत में पिता नवेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने बताया बेटी यशस्वी और शोभा का सपना पूरा करने के लिए आज भी वह अपना आशियान नहीं बना पाए है। ताकि दोनों बेटियों का सपना पूरा कर सके। वह मुंडेरा स्थित किराया कमरा लेकर फस्र्ट फ्लोर पर पत्नी शोभा व बेटियों के साथ रहते हैं। बेटी की पढ़ाई के लिए शुरुआत में दस लाख रुपये लगाए। जिसमें फीस, खाना, हॉस्टल और इंशोरेंस शामिल था। बेटी जब सेकंड ईयर में पहुंची तो अभी हाल में दो लाख रुपये लगाए हैं। ऐसे में कुल 12 लाख खर्च हो चुके हैं। उनका कहना है कि सरकार कोई रास्ता निकाले ताकि उतने ही खर्च में देश में ही पढ़ाई हो सके।
उधार लेकर भेजे थे रुपये
शंकरगढ़ के रहने वाले अर्जुन का बेटा राज प्रताप यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करता है। बेटे के सपने का पूरा करने के लिए पिता ने अपने नजदीकियों से पैसा उधार लेकर भेजे थे। इस युद्ध के चलते बेटा का सपना भी अधूरा पड़ा है। पिता सुनिल कुमार बताते है कि उनके ऊपर परिवार के साथ अन्य बच्चों का सपना पूरा करने की जिम्मेदारी है। बच्चें की पढ़ाई में दस लाख से अधिक खर्च चुके हैं। मेडिकल कॉलेज वालों ने एक साथ थोड़ा डिस्काउंट देकर एक साल व दो साल की फीस ही नहीं हॉस्टल और खाने तक पैसा जमा करा लिया है। यही कहना है पेरेंट्स राजेंद्र, रमेश, संजय कुमार, महेश प्रसाद का भी। सभी लोगों ने सरकार से बस अपील की है कि बच्चों के मेडिकल पढ़ाई को लेकर कोई रास्ता निकलें। बच्चें दिन रात आगे की पढ़ाई का टेंशन लेकर जी रहे है। यही बात सोमवार को घर पहुंचे प्रतापपुर निवासी अभिनव ने भी कही। उनका कहना है कि पिता ने सपने पूरा करने के लिए एक-एक रुपये जुटा कर भेजे थे। करियर भी अधूरा पड़ा है। थर्ड ईयर तक पहुंचकर पढ़ाई अधूरी हो गई है।
आगे का भविष्य के लिए काउंसिलिंग
यूक्रेन से प्रयागराज लौटे तमाम बच्चों के अभिभावकों को समझ में नहीं आ रहा कि वह अब क्या करें। इसे समझने के लिए एक्सपर्ट व डॉक्टर बन चुके सीनियर लोगों के साथ काउंसिलिंग कर रहे हैं। उन्हें आगे क्या और कैसे करना चाहिए। इस पर मंत्रणा कर रहे हैं। यह ही नहीं कई बच्चे गुमशुम रह रहे हैं। ऐसे में परेशान अभिभावक मनोचिकित्सक की भी सलाह ले रहे हैं।