प्रयागराज (ब्यूरो)। बता दें कि बॉडी के किसी पार्ट में हड्डी टूटने या फ्रैक्चर होने पर उसको दोबारा ठीक करने के लिए आपरेशन कर इम्प्लांट लगाए जाते हैं। यह कई प्रकार के होते हैं और तमाम कंपनियों द्वारा इनको बनाया जाता है। इनके रेट भी अलग होते हैं। सरकार इम्प्लांट को सरकारी अस्पतालों में मुहैया नही कराती है। इन्हें मरीजों को डॉक्टर की सलाह पर खुद खरीदना पड़ता है।

बेली के मरीजों ने सुनाई आपबीती

बेली अस्पताल के वार्ड में पोस्ट सर्जरी मरीजों को भर्ती किया जाता है। यहां भर्ती मरीजों ने बताया कि किसी कारण वश उनकी हड्डी या हड््डी का जोड़ डैमेज हो गया था। बाद में डॉक्टर्स ने इसे आपरेशन के जरिए इम्प्लांट लगाकर दुरुस्त किया। उनसे इम्प्लांट की खरीदी कराई गई और बदले में कोई बिल या रसीद नही दिया गया। मरीजों को यह भी नही मालूम कि इम्प्लांट की कीमत कितनी है। मरीजो से इम्प्लांट के नाम पैसे ले लिए गए। जिन मरीजों को इम्प्लांट लगाया गया है उनमें लवकुश ने 9 हजार ,सुमेंद्र निषाद, रामजी ने 15 हजार, सौरभ पांडे, संतोष कुमार खलासी ने 15 हजार रुपए जमा कराए हैं। इनको कोई बिल या रसीद नही मिली है।

वार्ड ब्वॉय को समझते हैं डॉक्टर

इस बारे में जब बेली अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ। एआर पाल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मरीजों को रसीद या बिल दिया जा रहा है। यह पूछने पर की इम्प्लांट की कोई रेट लिस्ट क्यों नही उपलब्ध कराई जा रही है। इस पर उन्होंने कहा कि हर कंपनी का अलग रेट का इम्प्लांट होता है। उन्होंने कहा कि हम प्रत्येक मरीज को इम्प्लांट खरीद की बिल या रसीद उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने यह भी कि मरीज वार्ड ब्वॉय को डॉक्टर समझ लेते हैं और उन्हें इम्प्लांट का पैसा थमा देते हैं।

हमारे पास इम्प्लांट देने का कोई प्राविजन नही है। मरीज खुद लेकर आते हैं। बाद में मांगने पर उनको रसीद दी जाती है। अगर किसी को रसीद या बिल नही मिला है तो इसके लिए पड़ताल की जाएगी।

डॉ। किरन मलिक, सीएमएस बेली अस्पताल