Patient को भी नहीं थी जानकारी
प्रतापगढ़ की रहने वाली 55 वर्षीय रानी देवी (बदला हुआ नाम) को नहीं पता था किसी और की लापरवाही ने उन्हें एचआईवी जैसी घातक बीमारी का शिकार बना दिया है। लास्ट मंथ वह डॉ। जौहरी के पास अपने नी ट्रांसप्लांट के लिए पहुंची थीं। डायग्नोसिस के दौरान पता चला कि वह इस जानलेवा बीमारी की जद में हैं। जानकारी मिलने के बाद पेशेंट और उनके फैमिली मेंबर्स के होश उड़ गए। बावजूद इसके डॉ। जौहरी ने हौसला नहीं हारा। जबकि ऐसे में मामलों में अक्सर सुनने को मिलता है कि डॉक्टर्स ने सर्जरी करने से मना कर दिया। उन्होंने नी ट्रांसप्लांट को अंजाम देने का निश्चय करने के साथ अपने स्टाफ को भी विश्वास में लिया।
सावधानी से दिया सर्जरी को अंजाम
डॉ। जौहरी ने काफी सावधानी से इस सर्जरी को अंजाम दिया। उन्होंने बताया कि पेशेंट खुद डरी हुई थी और ऐसे में खुद को इंफेक्शन से बचाते हुए सर्जरी करना खतरे से खाली नहीं था। पूरी तैयारी के साथ उन्होंने रानी देवी का नी ट्रांसप्लांट किया। वह बताते हैं कि सर्जरी के एक महीने बाद अब पेशेंट पूरी तरह स्वस्थ है। वह अपने पैरों पर चल रही है। साथ ही फैमिली मेंबर्स को भी बताया कि पेशेंट के साथ अच्छा बर्ताव करें। रेगुलर दवाएं लेने से एचआईवी पेशेंट को स्वस्थ रखा जा सकता है। उनके गाइडेंस को फॉलो करते हुए अब पेशेंट के परिजन भी उसका ख्याल रख रहे हैं।
कैसे हुई surgery
एचआईवी पेशेंट की सर्जरी एक बड़ा चैलेंज होती है। एक जरा सी लापरवाही डॉक्टर्स और बाकी स्टाफ का जीवन खतरे में डाल सकती है। ऐसे में डॉ। जौहरी ने सभी के लिए एंटी वायरल गाउन मंगवाया। ओटी को स्टर्लाइज किया गया। जिस वार्ड में पेशेंट को रखा गया था, वहां बेड की चादर और तकिए का भी स्टर्लाइजेशन किया गया। इन सब में एक लाख रुपए की एक्स्ट्रा लागत आ रही थी जिसे डॉ। जौहरी ने खुद वहन करने का निर्णय लिया। उन्होंने पेशेंट से केवल नी ट्रांसप्लांट का चार्ज लिया। वह कहते हैं कि यह सर्जरी मेरे लिए एक चैलेंज की तरह थी और इसे अंजाम देने के लिए मैंने पैसे के बारे में जरा भी नहीं सोचा। फायदे और नुकसान से ऊपर उठकर मैंने इस केस को हैंडल किया है।
जरा आप भी ध्यान दें
रानी देवी को एचआईवी का इंफेक्शन ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए हुआ। उन्होंने बताया कि 1980 के दशक में एक बीमारी के दौरान उन्हें एक यूनिट ब्लड चढ़ाया गया था। जिससे उनको यह जानलेवा रोग लगा। हालांकि इसका पता उन्हें अब जाकर हुआ। डॉ। जौहरी बताते हैं कि एचआईवी का लक्षण सामने आने में 10 से 15 साल तक लग जाते हैं। यही उनके साथ भी हुआ है। इसलिए बेहतर होगा कि लोग ट्रंासफ्यूजन के लिए ब्लड हमेशा रेपुटेड ब्लड बैंक से ही लें। ब्लड लेते समय उसकी जांच रिपोर्ट को अच्छी तरह से देख लें।