-राष्ट्रीय शिल्प मेले में गूंजी उज्जैन की कलापिनी व भुवनेश कोमकली की मधुर आवाज
-राजस्थान के लंगा समुदाय की लंगा गायकी के संग हुआ उड़ीसा के पारंपरिक शंख वादन का संगम
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PRAYAGRAJ: राष्ट्रीय शिल्प मेले में शहर के लोगों को हर दिन कला और संस्कृति की अनोखी झलक देखने को मिल रही है। शुक्रवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन की विदुषी कलापिनी व भुवनेश कोमकली का भजन व शास्त्रीय गायन को सुनने का मौका मिला। इसने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद राजस्थान के लंगा समुदाय की लंगा गायकी, उड़ीसा का पारंपरिक शंख वादन, बिहार, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा और मिजोरम के फोक डांस की पेशकश देखने को मिली।
सांस्कृतिक विविधता का संगम
राष्ट्रीय शिल्प मेले में लोग हैंडमेड प्रोडक्ट्स से लेकर डिफरेंट स्टेट्स की डिशेज का लुत्फ उठा रहे हैं। वहीं मुक्ताकाशी मंच कलाओं का मंचन हो रहा है। अपने इन्हीं स्वरूपों के कारण शिल्प मेला भारत के कल्चरल हेरिटेज का संगम बना हुआ है। शहर के साथ ही आस-पास के एरिया के दर्शक व कलाप्रेमियों का जमावड़ा पूरे समय लगा रहता है।
छठवें दिन गायन का शुभारंभ रागश्री तीन ताल में निबद्ध रचना 'रिसहै काहे मोह पर री' से किया। तत्पश्चात राग कल्याण तीन ताल में निबद्ध रचना 'मुख तेरों कारो कन्हैया' और अंत में राग नंद में 'साजन अब तो आजा तथा राग सोहनी भरियार में 'मारु जी झूलो न' का गायन कर भारतीय संगीत गायन की आध्यात्मिक परम्परा से उपस्थित लोगों को भावविभोर कर दिया। इस दौरान अन्य कलाकारों की मोहक प्रस्तुतियों ने भी लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया।