कोर्ट ने मुआवजा मांगने की दी छूट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि पुराने भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अधिगृहीत भूमि को 2013 के अधिग्रहण कानून की धारा 24(2) के अंतर्गत कालातीत (लैप्स) नहीं कराया जा सकता। पुराने 1965 के अधिग्रहण कानून पर नये कानून के उपबंध लागू नहीं होंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि 1979 में अधिगृहीत जमीन के कुछ हिस्से का उपयोग न किये जाने के आधार पर मुक्त करने का कोई उपबंध नहीं है। याची को भूमि का मुआवजा लेने की अर्जी देने की कोर्ट ने छूट दी है, जबकि याची की भूमि का कब्जा न लेने व मुआवजे का भुगतान न करने के आधार पर अधिग्रहण मुक्त करने के मामले मे हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है।
झूंसी में अधिग्रहित की गयी थी जमीन
यह आदेश जस्टिस एमसी त्रिपाठी और एसके पचौरी की बेंच ने कलावती व अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि राज्य सरकार ने 1979 में आवास विकास परिषद एक्ट के तहत प्रयागराज के झूंसी कोहना गांव की जमीन झूंसी भूमि विकास एवं गृह स्थान योजना-2 के लिए अधिगृहीत की। इसमें आवासीय भवन बनाए गए। सह खातेदार शांति देवी ने उसी समय आपत्ति की थी। सुनवाई न होने पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने ध्वस्तीकरण पर रोक लगाते हुए याची को भी निर्माण करने से रोक दिया। यह याचिका आठ अगस्त 2007 को खारिज हो गई। कोर्ट ने याची को अथारिटी से संपर्क करने की छूट दी। याची ने नया अधिग्रहण कानून 2013 लागू होने के बाद याचिका दाखिल कर धारा 24(2)के तहत पुराने अधिग्रहण को मुआवजा न देने व कब्जा न लेने के आधार पर अधिग्रहण मुक्त करने की मांग की। कहा कि अधिग्रहण लैप्स हो चुका है। कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना।