-माघ मेले में बसंत पंचमी से शुरू होती है कठिन धूनी पूजा
-जलते उपले का चक्र बनाकर श्री पंच भाई 13 त्यागी अखाड़ा अयोध्या के संत करते हैं तपस्या
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PRAYAGRAJ: विश्व कल्याण की कामना के साथ गुरुवार से माघ मेला क्षेत्र में श्री पंच भाई 13 त्यागी अखाड़ा, अयोध्या खाकचौक ने धूनी तपस्या की शुरुआत की है। इस बारे में स्वामी गोपाल दास जी महाराज ने बताया कि विश्व कल्याण के लिए अखाड़ा के संत यह कठिन तपस्या करते हैं। धुनी पूजा या तपस्या की परंपरा पिछले कई साल से चली आ रही है। आज भी सभी संत आज पूरी निष्ठा के साथ इसका पालन करते हैं।
छह चरणों में होती है धूनी तपस्या
-स्वामी गोपाल दास जी महाराज ने बताया कि धुनी तपस्या छह चरणों में होती है।
-बसंत पंचमी से शुरू होकर प्रत्येक वर्ष यह तपस्या चार माह तक चलती है।
-बसंत पंचमी से गंगा दशहरा तक संत सूर्योदय से तपस्या शुरू करते हैं और शाम तक निर्जला व्रत रहते हुए इसे करते हैं।
-एक बार संकल्प करने के बाद लगातार 18 वर्ष तक इस तपस्या को करना अनिवार्य है।
-इसका संकल्प लेने के बाद संत बीच में इसको छोड़ नहीं सकते है।
ऐसे होती है धूनी पूजा
-धुनि पूजा का अपना विधान है। इसमें संत उपलों यानी गोबर से बने कंडे को सुलगाकर उससे चक्र बनाते हैं।
-खुले आसमान के नीचे उसी चक्र के बीच में बैठकर संत तपस्या करते हुए पूरे समय हवन करते हैं।
-शाम को सूर्यास्त के बाद संत अपने स्थान से उठते हैं।
-धुनी तपस्या की शुरुआत से पहले संत कुछ भी खाते या पीते नहीं है।
-शाम को सूर्यास्त के बाद ही जल या अन्न ग्रहण करते हैं।
-माघ मेला के बाद वापस अपने अखाड़ों में जाने के बाद भी संत इसे जारी रखते हैं।
-यह तपस्या नियमित रूप से गंगा दशहरा तक जारी रहती है।
-भीषण गर्मी में भी इस तपस्या को इसी विधान के साथ करने का कठिन नियम है।