- रोजेदार अपने परिवार, रिश्तेदारों की बख्शिश कराने के लिए मस्जिदों में करते है विशेष दुआ

रमजानुलमुबारक रहमत व बरकत, मगफेरत और हिदायत का पाकीजा महीना है। इस माह-ए-मुबारक में ऐतिकाफ नामक एक ऐसी इबादत है, जो रमजान के आखिरी अशरे (अंतिम के दस दिन) में की जाती है। इस इबादत के माध्यम से रोजेदार अपनी, अपने परिवार के सदस्यों व रिश्तेदारों के लोगों की बख्शिश करवाने के लिए लगातार दस दिनों तक मस्जिद में कयाम कर विशेष इबादत के माध्यम से दुआ करते हैं। मौलाना मुजीबुद्दीन कहते हैं अब प्रत्येक मस्जिद में कम से कम एक मुत्तकी, परहेजगार रोजेदार व्यक्ति रमजान के आखिरी अशरे (10 दिन) के चौबीसों घंटे मस्जिद में बिता कर खुदा की इबादत में मशगूल रहते हुए पूरे दुनिया की सलामती के लिए दुआ करते हैं।

एतिकाफ का मिलता है सवाब

मौलाना मुजीबुद्दीन कहते हैं कि एक दिन के एतिकाफ का सवाब यह है कि हक तआला शानुहू उसके और जहन्नम के दरम्यान तीन खंदकें हायल फरमा देते हैं। एक खंदक की दूरी पुरी दुनिया के बराबर होगी। वहीं दूसरी हदीस शरीफ है कि जो शख्स अशरा-ए-रमज़ान का ऐतिकाफ करता है, उसको दो हज व दो उमरों का अज्र है। कोई भी शख्स ऐतिकाफ की नीयत कर पुरी दुनिया से अलग हो कर मस्जिद में खुदा की इबादत में मशगूल हो जाए तो निश्चित तौर पर अल्लाह उस बंदे की शफाअत करेंगे। इस माह-ए-मुबारक में खुदा की रहमत, बरकत व मगफेरत से सभी रोजेदार फैजयाब होते हैं। उन्होंने कहा कि रमजान में खुदा की रहमत व बरकत सैलाब की तरह आती है। जिसमें रोजेदार के छोटे-छोटे गुनाह बह जाते हैं। इसके बाद रोजेदार मुत्तकी और परहेजगार की सफ में खड़ा हो जाता है। रमजानुलमुबारक में खुदा की रज़ा और खुश्नुदी हासिल करने के लिए इबादत में अधिक से अधिक समय लगाकर नेक इंसान बनने की कोशिश करें।