प्रयागराज ब्यूरो दिये का अपना कोई मकान नहीं होता, जिस घर मे जलता है उस घर को रौशन कर देता है। शायर कि ये पंक्तियां इशारा करती हंै कि दीपों के त्योहार दिवाली का महत्व उन परिवारों के लिए क्या है जो इसके निर्माण से जुड़े हुए हैं। दिवाली को महज तीन ही दिन बचे हैं तो कुम्हार के चाक दोगुना रफ्तार से अपने चाक को घुमाना शुरू कर चुके हैं। कुम्हारों का आलमोस्ट पूरा परिवार इसमें जुटा हुआ है। कोई चाक पर दियों को को शेप दे रहा है तो कोई इसे सुखाने और फिर पकाने की प्रक्रिया पूरी करने में लगा हुआ है। उन्हें इस बार अच्छा बिजनेस मिलने की उम्मीद है।

रंग बिरंगे और सादे दीये
मार्केट के मूड को भी दिये का निर्माण करने वाले कुम्हार अब समझने लगे हैं। उन्होंने डिजाइनर दिये भी बनाने शुरू कर दिये हैं। कुछ के निर्माण में ही आर्ट दिखायी देता है तो कुछ दियों को रंगाई के जरिए आकर्षक बनाया गया है। कुम्हार कहते हैं कि ये दिये सुन्दर दिखने के साथ ही साथ हमारी संस्कृति और परंपरा से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।

तीन महीने पहले शुरू हो जाता है काम
दिवाली के लिए दीये बनाने के काम से जुड़े लोग बताते हैं कि इसके निर्माण की शुरुआत तीन से चार महीने पहले ही कर दी जाती है। कम से कम एक महीना पहले दियों को तैयार करके रख लिया जाता है। लास्ट ऑवर्स में आन डिमांड ही दियों का निर्माण किया जाता है। कुम्हार विष्णु प्रजापति बताते हैं कि दियों को बनाने के लिए काली मिट्टी का उपयोग किया जाता है। इस मिट्टी को कुम्हार लोग कौशांबी से मंगवाते हैं। मिट्टी का दाम अब 5000 हजार रुपए प्रति मैजिक होता है। हम तो तैयार करके थोक कारोबारियों को दे देते हैं। कुछ लोग हमारे यहां से भी खरीदकर ले जाते हैं।

इस बार मनाएंगे दीये वाली दिवाली
दियों का इस्तेमाल बेसिकली पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए किया गया था। दिवाली से पहले कीट पतंगों का प्रकोप बढ़ जाता था। इससे घर के खिड़की दरवाजे खोलना मुश्किल हो जाता था। दियों के इस्तेमाल के चलते कीट पतंगों की संख्या कम हो जाती है। दीप जलाने के इस महत्व को भी प्रयागराज के लोग समझते हैं। इसीलिए दियों की इस बार डिमांड ज्यादा होने की संभावना है। मार्केट में इस बाद मिट्टी से बने दिये आ गये हैं। डिजाइनर दिये हैं जो बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं।

दियों कि आकृति व उनके दाम
लक्ष्मी जी 7 बाती वाले दीये 70 रुपये प्रति पीस
मिट्टी के सादे दीये - 80 रुपए के सौ
मिट्टी के स्वास्तिक वाले दिये 10 रुपये प्रति पीस
कढ़ाई वाले रंगीन दिये 10 रुपये प्रति पीस

दिवाली के मौके पर दिये का महत्व बिल्कुल अलग होता है। मौसम परिवर्तन के दौर में दिये का इस्तेमाल के पीछे एक सोच भी है। दिये को लेकर पब्लिक से आ रहा रिस्पांस अच्छा है।
अवनीश

दीप न सिर्फ घर रौशन करता है बल्कि इससे तमाम परिवारों को मदद भी पहुंचती है। तमाम हाथों को काम मिलता है। पुरानी परंपराओं को जीवंत रखने का इससे बेहतर कोई माध्यम नहीं हो सकता।
विशाल पांडे