प्रयागराज (ब्यूरो)।पैशन क्या होता है और जिया कैसे जाता है? इसकी मिशाल देखनी है तो सावन के किसी भी सोमवार को प्रयागराज के अरैल रोड पर दोपहर तीन बजे के करीब पहुंच जाइये। यहां आपको ऐसा कुछ देखने को मिलेगा जो कहीं और शायद ही देखने को मिले। जोश और उत्साह से भरे गहरेबाज और उन्हें समर्थन करने वालों को हुजूम पूरे रास्ते हौसला बढ़ाता रहता है। यह कोई प्रतियोगिता नहीं है जिसमें कोई विजेता चुना जाता हो अथवा उसे कोई बड़ी पुरस्कार राशि दी जाती है। इसके बाद भी गहरेबाजी के शौकीनों का उत्साह प्रतियोगिता से भी कहीं बढ़कर होता है। यह सीन सोमवार को अरैल घाट रोड पर लाइव था।
हर साल होता है आयोजन
प्रयागराज में सावन के प्रत्येक सोमवार को गहरेबाजी का आयोजन सालों से चली आ रही परंपरा है। खास बात यह है कि इसमें सिर्फ घोड़े नहीं दौड़ाए जाते। बल्कि इन्हें इक्का में बांधकर दौड़ाया जाता है। इसे सिर्फ सावन के सोमवार को आयोजित करने के पीछे मान्यता है कि घोड़ा भी भगवान शिव का प्रतीक है। शक्ति का प्रतीक है। सावन में शिव जी की अराधना की जाती है इसलिए यह इक्का रेस होती है। सोमवार को गहरेबाजी को देखन के लिए दर्शकों की भारी भीड़ इकट्ठा थी। घोड़े के मालिकों से ज्यादा दर्शक उत्साहित दिखे। दर्शक कब मालिक सा बन गया पाता ही नहीं चला। कब दर्शक अपनी गाड़ी को लेकर अपने पसंदीदा घोड़ा के पीछे लग गया यह भी पता लगना मुश्किल था। जोश और जुनून से भरी इस प्रतियोगिता का आयोजन करीब आधे घंटे का ही होता है लेकिन इसके लिए घंटों इंतजार करना भी लोगों को मंजूर था। प्रशासन भी इस परंपरा को रोकना नहीं चाहता तो सुरक्षा के भी व्यापक इंतेजाम रखे गये थे।
मक्खन भी खिलाते हैं घोड़े को
दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इक्का रेस के लिए पहुंचे लोगों से बात की तो उनहोंने बताया कि प्रत्येक नस्ल का घोड़ा इस रेस के लिए पर्याप्त नहीं है। नस्ल के अनुसार ही उनकी फूडिंग तय होती है। ड्राई सीजन में इनकी खुराक कम होती है लेकिन प्रतियोगिता के सीजन में डाइट पर विशेष ध्यान दिया जाता है। घोड़ों को वैसे तो पूरे साल चना, घास, भूसा और चोकर दिया जाता है। मगर रेस के एक से डेढ़ महीने पहले इनकी खुराक बदल दी जाती है। इनके खाने में दूध, रबड़ी, मलाई, घी, मक्खन और घी शामिल कर दिया जाता है। जो दौडऩे वाले चालबाज घोड़े होते हैं उन्हें घी से ज्यादा मक्खन दिया जाता है। ऐसा उनका वजन कंट्रोल करने के लिए किया जाता है।
पूरे साल सेवा करते हैं
रेस में शामिल होने के लिए पहुंचे घोड़े के मालिकों ने बताया कि वे पूरे साल घोड़ों की सेवा करते हैं। इनकी मालिश के लिए दो आदमी अलग से रखे गये हैं। यह लोग घोड्रों के ट्रेनर होते हैं। इनका काम यह भी देखना होता है कि घोड़ों में फुर्ती बनी रहे। घोड़े अगर मस्कूलर बॉडी के होंगे तो उन घोड़ों मे ताकत ज्यादा होगी और वो ज्यादा तेज रफ्तार मे दौड़ पाएंगे। घोड़ा मालिक कहते हैं कि वे इनका कोई कॅमर्शियल इस्तेमाल नहीं करते। अपने पैशन के लिए पालते हैं और अपने लिए ही इस्तेमाल करते हैं। रोज इसकी सवारी करते हुए घूमने के लिए निकलते हैं।
कई स्थानों पर होता है ऐसा आयोजन
महंगे शौक गहरेबाजी को जीने वाले लोग बताते हैं कि घोड़े खरीदने के लिए उन्हें गुजरात, राजस्थान, मकरपुर, पंजाब जाना होता है। वहां लगने वाली मंडी में जाते हैं और ठोक बजाकर वहां से खरीदकर लाते हैं। यहां पैसा मैटर नहीं करता क्योंकि अच्छी नस्ल के घोड़े की शुरुआती कीमत ही 15 लाख के आसपास होती है। गहरेबाजों ने बताया कि इस तरह की प्रतियोगिता प्रयागराज के अलावा लखनऊ, दिल्ली, अयोध्या, भरमपुर, सोनपुर आदि स्थानों पर भी होती है। हम लोग वहां भी अपने घोड़ों को लेकर जाते हैं।
घोड़ा हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है। उसे खरीदने से लेकर पालने पोषने पर पूरा ध्यान रखते हैं। इनके मेंटेनेंस पर ज्यादा खर्च होता है लेकिन उसकी परवाह नहीं है। यह हमारा पैशन है तो उसी तरह से इसे जीते भी हैं। खान पान ही नहीं इनके रहने का स्पेश भी बिल्कुल साफ सुथरा रखा जाता है ताकि कोई बीमारी न हो।
भईया जमींदार
कसारी मसारी
किसी भी प्रतियोगिता से एक डेढ़ महीने पहले ही एलर्ट मोड में आ जाते हैं। घोड़े की डाइट बदल दी जाती है। बादाम से लेकर मक्खन तक उसकी डाइट में शामिल कर दिया जाता है। हर दिन पांच किलो दूध, ढाई सौ ग्राम बादाम दिया जाता है ताकि उसकी ताकत में कमी न आए। इनका हम कोई कॅमर्शियल इस्तेमाल नहीं करते।
बदर-ए-आलम
गहरेबाज
कटरा