प्रयागराज ब्यूरो । जिले के अंदर शुक्रवार को कानून व्यवस्था के बाद स्वास्थ्य सेवाओं का हाल भी सामने आ गया। राजूपाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल, उसके दो अंगरक्षकों को गोली व बम लगने के बाद जब लाया गया तो ट्रामा सेंटर में कोई वरिष्ठ डाक्टर नहीं था। जूनियर डाक्टर और नर्स ही थे। जूनियर डाक्टर व नर्स स्टाफ ने आईसीयू में भर्ती कराने के लिए बोला। जब उमेश को ले जाने के लिए स्ट्रेचर मंगाया तो ढूंढने व लाने में दस मिनट से अधिक का समय लग गया। जैसे ही स्ट्रेचर मिला तो भीड़ व परिजन उसे लेकर आईसीयू की तरफ भागे। लेकिन कोई स्टाफ साथ न होने से भीड़ उमेश को स्ट्रेचर पर लेकर पंद्रह मिनट तक अस्पताल परिसर में इधर-उधर भागते रहे। थोड़ी देर बाद एक स्टाफ आकर आईसीयू का रास्ता बताया तो भीड़ ने पीट दिया। आईसीयू में बेड पर उमेश को लेटाने के बाद बीस मिनट तक डाक्टर्स भी नदारद रहे। जिसपर भीड़ भड़क गई।

बिफर पड़े लोग व करीबी
गोली व बम लगने के बाद उमेश पाल समेत उसके अंगरक्षकों को एसआरएन अस्पताल लाया गया। जैसे ही यह सूचना आग की तरफ पूरे शहर में फैल चुकी थी। अस्पताल में भारी संख्या में भीड़ जुट गई। आईसीयू वार्ड के अंदर डाक्टरों के न मिलने पर घायलों के साथ आए लोग बिफर पड़े। जिसपर रिजवान नीवां के बेटे अम्माद हसन उर्फ अमन जोर-जोर से चिल्ला कर पुलिस वालों से पूछते रहे। आखिर डाक्टर्स कब आएंगे। मरीज को भर्ती हुये करीब 25 मिनट से अधिक का समय हो गया। यह सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था है क्या? जिसपर कोई भी पुलिसकर्मी कोई जवाब नहीं दे पाया। बस डाक्टर्स आ रहे यह कहते रहे। जानकारों की माने तो स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में ट्रामा सेंटर 24 घंटे जूनियर डाक्टरों और नर्सों के हवाले ही रहता है।

घटना बड़ी फिर भी समय पर सक्रिय नहीं हुये डाक्टर्स
शुक्रवार शाम उमेश पाल व उसके अंगरक्षकों पर हमला, प्रदेश की सबसे बड़ी घटना थी। इसके बावजूद डाक्टर समय पर सक्रिय नहीं हुए। ट्रामा सेंटर में जब घायल ले जाए गए तो न मौके पर स्ट्रेचर मिला न व्हीलचेयर। व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त दिखी। कुछ लोग भीतर स्ट्रेचर लेने गए तो उन्हें वार्ड ब्वाय तक नहीं मिले। इस पर वहां शोरशराबा होने लगा। वरिष्ठ डाक्टरों की टीम पहुंचने में करीब 25 मिनट लग गए।