प्रयागराज ब्यूरो । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि रात में हुई हत्या के बाद फरार होने के आधार पर किसी को हत्या का दोषी करार नहीं दिया जा सकता। जब तक कि उसकी संलिप्तता के ठोस सबूत न हो। कोर्ट ने फरार होने पर संदेह के कारण हत्या का दोषी ठहराकर सजा देने को सही व वैध नहीं माना और उम्र कैद की सजा रद करते हुए आरोपित को बरी कर दिया है। जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की बेंच ने सजा के खिलाफ राजवीर सिंह की अपील को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है।
1999 में हुई थी हत्या
आगरा के डौकी थाना क्षेत्र में चार अगस्त 1999 की रात बिजली न होने के कारण घर के बाहर चबूतरे पर सोते समय कानूनगो नेम सिंह की हत्या कर दी गई । अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या के आरोप में आगरा के डौकी थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई। पुलिस ने चार्जशीट दायर की और सत्र अदालत ने उम्रकैद व 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इसे अपील में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा, अभियोजन अपराध साबित करने में विफल रहा है। घटना के समय घर में दो पुरुष सदस्य भी घर में मौजूद थे। मृतक की पत्नी जमीरा देवी सुबह पांच बजे जब घर के भीतर से बाहर आई तो चारपाई के नीचे खून बहते देखा। पता चला किसी ने नेम सिंह की हत्या कर दी थी। बेटे सुरेंद्र कुमार ने घटना की प्राथमिकी दर्ज कराई। पुलिस ने गांव से फरार होने के संदिग्ध आचरण को लेकर अपीलार्थी को आरोपित किया। कोर्ट ने कहा, केवल किसी के संदिग्ध आचरण पर दोषी नहीं माना जा सकता। वह भी हत्या जैसे मामलों में। साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत कानून की नजर में सजा सही नहीं है। अभियोजन सबूत जुटाने में विफल रहा। कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।