प्रयागराज (ब्यूरो)। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद से अब तक एलओसी से एलएसी तक सैन्य ताकत कई गुना बढ़ गई है। आधुनिक हथियारों से लैस जवान सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। 1999 में तीन मई से 26 जुलाई तक चले कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने 'टाइगर हिलÓ पर वापस तिरंगा लहराने के लिए अपने जान की बाजी लगा दी थी। इस युद्ध में भारतीय सेना का हिस्सा रहे जवान कहते हैं कि गोली की बारिश बंद नहीं हो रही थी। हमारा लक्ष्य जमीन से 18 हजार हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर था। लक्ष्य बेहद मुश्किल था लेकिन हौसला साथ था। इसी के दम पर हम चोटी पर पहुंचे और टाइगर हिल पर फिर से तिरंगा लहराने में कामयाब हो गए। युद्ध में शामिल 42 जवाब किसी न किसी रूप में प्रयागराज से ताल्लुक रखते थे। इसमें 13 शहीद हो गये। 30 आज भी कारगिल युद्ध की शौर्य गाथा सुनाते हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने ऐसे ही कुछ फौजियों से बात की
हर पल छूकर गुजरती थी मौत
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय थल सेना में नायक की जिम्मेदारी संभालने वाले वाईएन ङ्क्षसह बताते हैं कि दुश्मन का किला भेदने के लिए 60-60 जवानों की 15 टोलियां बनायी गयी थी। हमें हथियार, गोलियां, गोला-बारूद लेकर जाना था। हमें जिम्मेदारी दी गयी थी कि किसी एक जवान को गोली लगे तो दूसरा उसे रीप्लेस कर दे। यह क्रम 26 जुलाई तक चलता रहा। हर पल मौत हमें छूकर गुजरती थी। दुश्मन के ऊपर होने के कारण हमारे पास आमने सामने लडऩे का आप्शन नहीं था। हमने टाइगर हिल को नीचे तोडऩा शुरू किया। तीन स्थानों पर सर्किल बनाकर पहाड़ी को घेरकर ऊपर चढऩे लगे। पत्थरों की ओट लेकर फायङ्क्षरग करते रहे। वह पल आज भी रोमांचित करते हैं। मुझे प्राउड फील होता है कि मैं इस युद्ध का हिस्सा बना।
जेट मिराज ने मचायी तबाही
कारगिल युद्ध के समय भारतीय वायु सेना में एचएफओ रहे रामलखन प्रजापति बताते हैं कि मैं मिग 21 के लिए ट्रेंड था। युद्ध शुरू हुआ तो मैं चेन्नई में पोस्टेड था और बेंगलुरु गया था। मेरा नाम आया तो मुझे दिल्ली से जम्मू ट्रांजिट कैंप भेजा गया। अवंतीपुर एयरफोर्स स्टेशन पर मुझे युद्ध के लिए विमानों को तैयार करना था। हाइड्रोलिक सिस्टम, फ्लाइंग सिस्टम, टायर, गन, बम मिसाइल लोड करना मेरा काम था। हमने रेडीमेट सीमेंट की हवाई पट्टी सुरक्षित रखी थी ताकि दुश्मन के हमले में अगर बेस बर्बाद हो तब भी हम जवाबी हमला कर सकें। हमारे कुछ विमान हर समय हवा में ही पेट्रोङ्क्षलग करते थे। जब युद्ध ङ्क्षखचने लगा तो फाइटर जेट मिराज को लाया गया और उसने दुश्मनों के बंकर में जो तबाही मचाई वह उनके जीन तक में दहशत पैदा करने वाली थी। ङ्क्षजदा आदमी आगे बढ़ता और इसकी लाश जब आती वह पल हृदय विदारक होता था।
टाइगर हिल में लग गई आग
थल सेना में सूबेदार रहे श्याम सुंदर सिंह पटेल बताते हैं कि मेरी तैनाती बीईजी रुड़की रेजीमेंट में थी। गिलगिट की पहाड़ी के आसपास माइनस 54 डिग्री टेम्प्रेचर था। ऊंचाई लगभग 18 हजार फीट थी और पहाड़ी पर चढऩे के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं था। हम रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ रहे थे। ऊपर से दुश्मन गोली बरसा रहा था। अपनी आखों से जवानों को शहीद होते देख रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हारी। टाइगर हिल की ऊंची चोटी से जब पत्थर के टुकड़े गिरकर हमें लगते तो उसकी चोट गोली के जैसी ही होती थी। हालात बिगड़े तो जवानों को आदेश दिया गया कि पूरी ताकत से हमला करो। गोलियां और इतने बम बरसाए गए कि टाइगर हिल पर आग लग गई। इसके बाद पहाड़ी पर चढ़कर कब्जा करके तिरंगा लहराया गया। करचन ग्लेशियर में भी दुश्मनों के सूचना पर 5590 प्वाइंट पर चढ़ाकर करके वहां भी विजय हमने पाई।
शहीदों को अर्पित की श्रद्धांजलि
वीर सेनानी पूर्व सैनिक कल्याण समिति ने कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर सैन्य युद्ध स्मारक स्मृतिका डीएसओआई पोनप्पा रोड न्यू कैंट वीर शहीदों को नमन कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। नेतृत्व पूर्व सूबेदार कारगिल युद्ध विजेता श्याम सुंदर सिंह पटेल ने किया। संयोजन पूर्व सूबेदार कारगिल युद्ध विजेता ईश्वर चंद तिवारी ने किया। रिटायर्ड कैप्टन डीपीएनसिंह ने पुष्पमाला शहीदों को अर्पित कर उन्हें सलामी दी। बीएन सिंह, गुनई यादव, ईश्वर चंद तिवारी, मेजर एच, कैप्टन एनपी सिंह, जीपच् गुप्ता, बच्चालाल प्रजापति, बीएल यादव मौजूद रहे।