प्रयागराज (ब्यूरो)। राजभाषा संयोजक प्रो। संतोष भदौरिया ने कहा कि हिंदी की दुनिया को विस्तृत करने में तकनीक की उल्लेखनीय भूमिका है। किंतु लिपि का प्रयोग भी इसमें महत्वपूर्ण है। तकनीक ने रोमन लिपि को बहुप्रचलित किया है, जिससे आगाह भी रहना चाहिये.उ न्होंने कहा कि हिंदी को अभी तकनीकी तौर पर और सक्षम बनाये जाने की ज़रूरत है। मुख्य वक्ता डॉ। आशुतोष पार्थेश्वर ने प्रेमचंद के हवाले से हिंदी की दुनिया के विकास और स्वीकार्यता की प्रक्रिया को बताया। उन्होंने कहा कि हिंदी को सामाजिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाये जाने के प्रयास होने चाहिये। विश्व भाषा का मतलब ही है हिंदी के माध्यम से विश्व को जानना। विश्व की प्रत्येक संस्कृति को हिंदी के माध्यम से जानें। प्रो। प्रणय कृष्ण ने आइसलैंड में हिंदी विषय पर अपनी बात रखी। द्वितीय सत्र का संचालन डॉ। अमृता ने किया। दोनों सत्र में धन्यवाद ज्ञापन राजभाषा अनुभाग अधिकारी हरिओम कुमार ने किया। इस अवसर पर प्रो। एस.पी शुक्ल, डॉ.भूरेलाल, डॉ। राकेश सिंह, डॉ। बसंत त्रिपाठी, डॉ। दिनेश कुमार, डॉ। जनार्दन, डॉ। दीनानाथ मौर्या, डॉ। संतोष कुमार सिंह,डॉ। लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता ,डॉ। शिवकुमार यादव, डॉ। वीरेंद्र मीणा,डॉ। सुजीत कुमार सिंह, डॉ। चितरंजन, सृष्टि, श्वेता, धर्मवीर, बालकरन,प्रतिमा, राहुल कुमार, सत्यम, करन परिहार सहित तमाम शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।