प्रयागराज ब्यूरो, सपा संरक्षक मुलायम ङ्क्षसह यादव के मुख्य मंत्री रहने के दौरान 2007 में प्रयागराज में अद्र्धकुंभ मेला लगा था। मेला में शामिल होने के लिए पहुंचे मुलायम सेक्टर चार स्थित तत्कालीन अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के शिविर में अखाड़ों के महात्माओं से मिले थे। यहां संतों के सामने हाथ जोड़कर यह कहना कि 'मुख्यमंत्री नहीं, भक्त के रूप में आया हूं। मुझे आशीर्वाद दीजिए जिससे अच्छा काम कर सकूंÓ संतों को आज भी याद है। अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि कहते हैं कि मुलायम ने संतों का सम्मान किया था। बिजली, पेयजल, शौचालय सहित हर सुविधा करमुक्त कर दिया। जूना अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत प्रेम गिरि के अनुसार अखाड़ों का आश्रम बनवाने के लिए भी सहयोग दिया था।
बोले, मिलकर काम किया जाए
पूर्व राज्यसभा सदस्य रेवती रमण ङ्क्षसह बात करते हुए 1974 के दौर में पहुंच जाते हंै। पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचा था। वहां मुलायम ङ्क्षसह यादव से मुलाकात हुई थी। पहली मुलाकात के बाद लगा जैसे लंबे समय से हम एक-दूसरे को जानते हों। मुलायम ङ्क्षसह यादव सीनियर थे, लेकिन उन्होंने कभी इसका अहसास नहीं होने दिया। इससे एक लगाव सा हो गया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम ङ्क्षसह यादव कैबिनेट मंत्री बने। सरकार में मैं भी मंत्री बना। सन 1980 में सरकार चली गई और कांग्रेस की सरकार बनी। चार वर्ष बाद मुलायम ङ्क्षसह यादव को नेता विरोधी दल बनाया गया। लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजीत ङ्क्षसह से कुछ बातचीत के बाद वह नेता विरोधी दल से हट गए। उस समय वह काफी संकट में थे। हमारी उनसे बातचीत हुई और फिर क्रांतिकारी मोर्चा बनाया गया। इसमें जनता पार्टी के 22 विधायक भी शामिल हुए। मोर्चा का नेता मुलायम ङ्क्षसह यादव को बनाया गया। जबकि उपनेता उनको चुना गया। क्रांतिकारी मोर्चा ने उप्र का दौरा किया। इस दौरान जनता ने नेताजी को हाथों हाथ लिया और 1989 में जनता दल की सरकार बनी। मुलायम ङ्क्षसह यादव मुख्यमंत्री बने। नेताजी कहते थे कि कुंवर साहब मुझे मुख्यमंत्री बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1991 में कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद हो गया, जिस कारण मैं नेताजी से अलग हो गया। लेकिन कुछ समय बाद ही नेताजी ने मुझे बुलाकर बातचीत की। बोले कि हमेशा साथ दिया है, इसलिए साथ में मिलकर काम किया जाए। इसके बाद मैं कभी उनसे अलग नहीं हुआ।
यूपी का बंटवारा नहीं चाहते थे मुलायम
मुलायम ङ्क्षसह बड़े दिल के आदमी थे। दोस्तों के दोस्त थे। ऐसे लोग कम मिलेंगे जिन्हें विपक्ष के लोग भी सराहें। मेरी उनसे अंतिम मुलाकात 13 फरवरी 2016 को हुई थी। यादों को कुरेदते हुए पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने कहा, वह नहीं चाहते थे कि उत्तर प्रदेश का कभी विभाजन हो। उनका मानना था कि प्रशासनिक दक्षता बढ़ाई जाए। सुविधाओं को विस्तार दिया जाए लेकिन प्रदेश का बंटवारा ठीक नहीं है। इसकी वजह सांस्कृतिक विरासत को संजोने और समृद्धिशाली इतिहास व परंपरा को बनाए रखना था। वह इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज करने के कभी विरोधी नहीं रहे। सदन की परंपरा और गरिमा का ध्यान रखते थे। 1997 में उत्तर प्रदेश की विधानसभा में हुई मारपीट को याद करते हुए पूर्व राज्यपाल ने बताया कि, मुझे चोट लगी थी। मुझे देखने विजयाराजे ङ्क्षसधिया आईं थीं तो उनसे मुलायम ङ्क्षसह ने कहा, मुझे पता है पंडितजी को चोट किसने पहुंचाई, लेकिन सदन की गरिमा को ध्यान में रखते हुए उसे उजागर करना ठीक नहीं है। इसी तरह एक बार पीठ पीछे किसी संदर्भ में कह दिया कि मैं पंडितजी को योग्य नहीं मानता। इसका दूसरे सदस्यों ने प्रतिवाद किया कि सलाह लेने तो आप उन्हीं के पास जाते हैं। इस पर उन्होंने तुरंत कहा, भूल हो गई। इस बात को सदन की कार्रवाई से कृपया निकाल दें।