प्रयागराज (ब्यूरो)। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में सोमवार को ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ एकेडमिक्स नेटवर्क (ज्ञान) के कोर्स 'प्रोटिवोमिक्स एंड अर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इन बायोलॉजी एंड मेडिसिनÓ का इनॉगरेशन हुआ। इस मौके पर साइंस फेकेलिटी में सेमीनार का आयोजन किया गया। चीफ गेस्ट वाइस चांसलर प्रो। संगीता श्रीवास्तव रहीं। इनॉगरेशन प्रोग्राम में एंजिला रसकिन यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम के प्रो। ग्राहम रॉय बाल और आईआईटी बांबे के प्रो। संजीव श्रीवास्तव ने मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुए।
ज्ञान नेटवर्क का प्रयास
वाइस चांसलर प्रो। संगीता श्रीवास्तव ने कहा कि ज्ञान नेटवर्क की ओर से प्रारंभ किया जा रहा बायोलॉजी और मेडिसिन में प्रोटिवोमिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कोर्स समय की मांग है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग करके नए प्रोटींस की खोज की जा रही है। मेडिकल फील्ड में एआई के प्रयोग से चमत्कारी परिणाम देखने को मिलेंगे। प्रोटिवोमिक्स और एआई का काम्बो मेडिकल फील्ड में नई क्रांति की गाथा लिखेगा। गंभीर बीमारियों को आसान इलाज संभव हो सकेगा। बीमारियों के इलाज के नए तरीके भी खोजने में आसानी होगी।
इंसानों में 20 हजार जींस
मुख्य वक्ता प्रो। ग्राहम रॉय बाल ने बताया कि करीब 20 हजार जीन्स के संयोजन से मानव शरीर का निर्माण होता है।
प्रत्येक जीन कई हजार प्रोटीन्स से संयोजित है।
एआई की मदद से इन सभी प्रोटीन का अध्ययन करके नई दवाइयों निर्मित करने का प्रयास हो रहा है
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस भविष्य में चिकित्सा विज्ञान की रूपरेखा बदल कर रख देगी।
यदि एआई का गलत प्रयोग किया गया तो परिणाम भी गंभीर होंगे।
टेक्नोलॉजी बनी जरूरत
आईआईटी बाम्बे के प्रो। संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि आज इंसान ऐसे युग में जी रहा है जहां टेक्नोलॉजी उनकी जरूरत बन गई है। इसी टेक्नोलॉजी और आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस का उपयोग करके हम कैंसर जैसी जटिल बीमारियों को समझकर उसका इलाज ढूंढ सकते हैं। हर इंसान की शारीरिक बनावट अलग हैं। इस कारण एक ही दवा का प्रभाव अलग-अलग हो सकता है, ऐसे में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग करके हम हर एक इंसान के प्रोटीन का अध्ययन करते हुए उस पर काम करने वाली अधिक प्रभावी दवा का विकास कर सकते हैं।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के डीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रो। एसआई रिजवी ने कहा कि एआई पर काफी पहले से काम चल रहा है। ब्रिटिश गणितज्ञ एलेन ट्यूरिंग ने 1930-40 के दशक में इसकी नींव रखी थी। एआई की सहायता से भविष्य में ऐसे प्रोटीन विकसित कर लिए जाएंगे जिससे असाध्य रोग से ग्रसित रोगी का भी इलाज संभव होगा। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस दोधारी तलवार है और इसका उपयोग संयम से किया जाना चाहिए। प्रोटीन कई प्रकार की होती लेकिन उनके क्रियाशील होने के बाद ही उसकी प्रकृति का पता चल सकता है। एआई का प्रयोग करके प्रोटीन के विघटन से पहले ही उसकी प्रकृति को जाना जा सकेगा।
ब्रीफ किया कोर्स
साइंस फेकेलिटी के डीन प्रो। बेचन शर्मा ने ज्ञान कोर्स की डिटेल ब्रीफ की। कहा कि हमारा प्रयास है कि हम एक ऐसा मंच बनाए जहां विकसित देशों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ हमारे साथ काम करें। अपनी जानकारी साझा करें और हमारे द्वारा किए जा रहे काम का मूल्यांकन भी कर सकें। उन्होंने कहा कि बायोटेक्नोलॉजी में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एक क्रांति को जन्म दे सकता है जो हमें प्रोटोमिक्स और उससे जुड़े अन्य पहलुओं पर भी शोध को प्रेरित करेगा। कोर्स कोआर्डिनेटर डा। अरूप अचार्जी ने डिटेल शेयर की। डा। मनीष शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।