प्रयागराज (ब्यूरो)। अस्पतालों में इलाज कराने जाने वालों ने क्या कभी डॉक्टर के पर्चे को गौर से देखा है। इसमें लिखी दवाएं क्या आप आसानी से पढ़ सकते हैं? ऐसा क्या है कि इस लिखावट को केवल मेडिकल स्टोर वाला ही पढ़ सकता है। इस समस्या से मरीज और उनके परिजन दोनों परेशान होते हैं। इस संबंध में एम्स नई दिल्ली द्वारा की गई एक स्टडी में डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर्चे को कन्फ्यूजिंग बताया है। जिसमें यह कहा गया है कि इस पर्चे में कई बार अनावश्यक दवाएं लिखी होती है। जबकि मरीज को ऐसा पर्चा दिया जाए, जिसे वह आसानी से पढ़ सके।
जारी की गई है गाइड लाइन
बता दें कि सरकार द्वारा पहले से ही डॉक्टर्स को साफ साफ प्रिस्क्रिप्शन लिखने की गाइड लाइन जारी की गई है। लेकिन इसका पालन नही हो रहा है। प्राइवेट ही नही, सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में भी दवाओं का पर्चा जल्दी पढऩे में नही आता है। अगर मरीज या उसके परिजन दवाओं के बारे में समझना चाहे तो यह उनके लिए दूर की कौड़ी साबित होती है। स्टडी में यह भी मिला है कि पर्चे पर कुछ दवाएं ऐसी भी लिखी जाती हैं जिनका इलाज से कोई लेना देना नही होता है। इससे सेहत खराब होने के साथ जेब पर अतिरिक्त बोझ भी पड़ता है।
यहां पर होने लगा नियमों का पालन
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि डॉक्टर के पर्चे पर तो नही, बल्कि मेडिको लीगल रिपोर्ट भले ही साफ साफ बनाने के आदेश हुए हैं। इसका पालन भी कराया जा रहा है जिससे इसे पीडि़त पक्ष भी पढ़ सके। इसके अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी कम्प्यूुटराइज्ड बनाने के निर्देश दिए गए हैं। इन चीजों के लिए जल्द ही एक साफ्टवेयर भी लांच किया जाना है।
नियम का पालन नही होने से नुकसान
स्टडी कहती है कि गाइड लाइन का पालन नही करने और प्रिस्क्रिप्शन साफ नही लिखने से कई नुकसान हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं-
मरीजों को अनावश्यक दवाएं लेनी पड़ सकती हैं।
फार्मासिस्ट अनजाने में गलत दवाएं पकड़ा सकता है।
गलत इलाज से दवाओं का साइड इफेक्ट हो सकता है।
मरीज दवाओं के वैकल्पिक साधनों का यूज नही कर सकता है।
इलाज से पारदर्शिता गायब हो सकती है।
दो हजार से अधिक कर रहे प्रैक्टिस
वर्तमान में जिले में दो हजार से अधिक डॉक्टर रोजाना ओपीडी में बैठ रहे हैं।
इनमें से 1500 डॉक्टर इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन और 500 से अधिक डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में मरीज देख रहे हैं।
इन सभी के लिए साफ साफ प्रिस्क्रिप्शन लिखने के आदेश हो चुके हैं।
10 फीसदी को छोड़ दीजिए तो बाकी का यही हाल है। सबसे ज्यादा स्थिति सरकारी अस्पतालों में खराब है।
यहां मरीज अधिक होने की वजह से डॉक्टर किसी तरह उनको निपटाते नजर आते हैं।
यह बात सही है। डाक्टर्स को पर्चे पर साफ साफ दवाएं लिखनी चाहिए। लेकिन इसे कन्फ्यूजिंग नही कहा जा सकता है। कई प्राइवेट डॉक्टर्स अब साफ लिख रहे हैं। कई बार अधिक मरीज होने पर उन्हे घसीटा राइटिंग का उपयोग पर्चे पर करना पड़ता है।
डॉ। कमल सिंह, अध्यक्ष, इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन
यह गाइड लाइन तो पहले से है। हाल ही एक बार फिर से सरकार ने इसके लिए बोला था कि डॉक्टर्स का प्रिस्क्रिप्शन साफ होना चाहिए। इसका पालन भी किया जा रहा है। कई डॉक्टर्स कम्प्यूटराइज्ड पर्चे दे रहे हैं। इसमें कन्फ्यूजन की गुंजाइश नही है।
डॉ। आशुतोष गुप्ता, सचिव, इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन
पर्चे पर दवाएं साफ लिखने पर तो अभी मेरी कोई आदेश नही दिया गया है, लेकिन सरकार के निर्देश पर मेडिको लीगल साफ साफ लिखने को कहा गया है। साथ ही पोस्ट मार्टम रिपोर्ट भी अब कम्प्यूटराइज्ड बनवाई जा रही है। जिससे मरीज और आम जनता को इसका लाभ मिल सके। जल्द ही इन सबको लेकर एक नया साफ्टवेयर भी लांच होने जा रहा है।
डॉ। आशु पांडेय, सीएमओ प्रयागराज