प्रयागराज ब्यूरो ।मानव ने गायन, वादन और नृत्य के समावेशी स्वरुप संगीत को कबसे अपने जीवन मे अंगीकार किया? यह विश्वास के साथ बता पाना मुश्किल है लेकिन इतना तो तय है कि संगीत, मानव जीवन कं तब भी था जब भाषा अस्तित्व में नहीं थी। वक्त बीतने के साथ संगीत अपनी नैसर्गिक अवस्था से कहीं ज्यादा व्यवस्थित हुआ। थाट और राग के रूप में लिपिबद्ध हुआ। कानों में शहद घोलते स्वर पढ़े और लिखे जाने लगे। इलाहाबाद म्युजिकल ग्रुप इस थॉट को अंगीकार करता है। इसी के तहत रविवार की शाम एएमए सभागार में म्युजिकल संध्या 'मोहे श्याम रंग दई देÓ का आयोजन करने जा रहा है।

मेमोरी स्ट्रांग बनाता है म्युजिक

म्युजिक लवर डॉ घनश्याम बताते हैं कि आज संगीत को आमोद प्रमोद से इतर, मानव स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर रखने वाली कला के रूप में भी जाना जाने लगा है। ब्लड प्रेशर को स्थिर रखना हो, अवसाद से दूर रखना हो, अनिद्रा से बचाना हो, स्मरण शक्ति को बेहतर करना हो, शरीर के दर्द के अहसास को कम करना हो, इन सभी अवस्थाओ में संगीत के सकारात्मक असर की विज्ञान भी पुष्टि करता है। विज्ञान के अनुसार मनुष्य के भीतर, प्रतिदिन 30 मिनट मधुर संगीत सुनने से उसी तरह के हार्मोन्स निकलते हैं जैसे व्यायाम करने से, अच्छा भोजन करने से या मालिश करवाने से। इससे आपके शरीर के दर्द, और मानसिक अवसाद में कमी आती है। संगीत के मानव मन पर ऐसे ही सकारात्मक असर को स्थापित करने का प्रयास करती शाम का विषय है, मोहे श्याम रंग दई दे

पुराने गानों की होगी प्रस्तुति

सचिव तरुण भाटिया कहते हैं कि 1940 से 1960 के बीच के भारतीय फिल्म संगीत का दौर जब फिल्में ब्लैक एंड ह्वाइट ही हुआ करती थी, तब भी फिल्म संगीत अपनी भीतर अनेको रंग समेटे हुए, रहा करता था। उसी दौर के नगमों, गायको, गीतकारों और संगीतकारों को इस प्रोग्राम के माध्यम से श्रद्धांजलि देने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद म्यूजिक क्लब अपनी संगीत यात्रा के 11वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है। प्रोग्राम शाम छह बजे से शुरू होगा। चीफ गेस्ट के रूप में जस्टिस अशोक कुमार और डॉ अशीष गोयल मौजूद रहेंगे।