प्रयागराज ब्यूरो ।प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कोई न कोई कला तथा कारीगरी छुपी होती है बस जरूरत होती है उसकी प्रतिभा को निखारने की। अच्छा माहौल एवं अवसर प्राप्त होने पर वह अपनी कला का बेहतर प्रदर्शन करता है। इस तरह का मौका सरकार की तरफ से दिया जा रहा है। उक्त बातें केन्द्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने शिल्प ग्राम (क्राफ्ट टूरिज्म विलेज मूंज शिल्प) महेवा नैनी के विकास कार्यों के लोकार्पण के दौरान कही। कहा कि ओडीओपी के तहत चयनित उत्पाद यहां के लोगों को रोजगार तो उपलब्ध कराएगा ही साथ में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। इस दौरान कारीगरों द्वारा लगाए गए स्टालों का निरीक्षण कर उनके उत्पादों की सराहना की गई। केंद्रीय मंत्री के साथ राकेश सचान सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम, खादी एवं ग्रामोद्योग, राज्यमंत्री ग्राम्य विकास विभाग एवं समग्र ग्राम विभाग, विजय लक्ष्मी गौतम भी रही। विकास आयुक्त हस्तशिल्प कार्यालय व उद्यमिता विकास संस्थान की ओर से यहां चालीस से अधिक स्टाल लगाए गए थे।
मील का पत्थर साबित होगा
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने यहां लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए कारीगरों से उसके विषय में जानकारी प्राप्त की और उनके द्वारा बनाये गये उत्पादों की सराहना की। कहा कि मूंज शिल्प को पर्यटन से जोडऩे की दिशा में यह एक अच्छा कदम है। कहा कि ऐसी प्रदर्शनी के आयोजन से मंूज कारीगरों की कला को आगे बढ़ाने तथा उनको आत्मनिर्भर बनाने में मील का पत्थर साबित होंगे। विभिन्न जिलों के, विभिन्न तरह के मूंज उत्पाद लगाकर निश्चित ही सरकार इस योजना के माध्यम से हस्तशिल्पियों को प्रोत्साहित करने और उनको विकास के पथ पर अग्रसित करने के लिए यह प्रदर्शनी कारगर साबित होगी। विभिन्न जनपदों से आये हुए बुनकरों द्वारा प्रदर्शनी में लगभग 40 स्टॉल लगाये गये थे। इस दौरान मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत व सम्बंधित विभागों के अधिकारीगण उपस्थित रहे।
जानिए क्या है मंूज क्राफ्ट
नैनी क्षेत्र मूंज कला के लिए प्रसिद्ध है। मंूज व कास एक प्रकार की जंगली घास है। जो नदी कि किनारों पर बहुतायात से पाई जाती है। इसे ओडीओपी योजना के तहत शामिल किया गया है।
मूंज घास का बाहरी आवरण है जिसे छिल कर गांठों में परिवर्तित कर लिया जाता है। यह कला साठ से सत्तर वर्षों से चलन में है।
मूंज से कई घरेलू सामान बनाए जाते हैँ, जैसे कि पावदान, थैले, स्टूल, रस्सी, पेन स्टैंड, कुर्सियां और मेज
मूंज उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। इसलिए इनकी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बड़ी मांग है
इस घास को शीतकाल में काट लिया जाता हे और इसके छिलकों को कुछ दिनों के लिए ओस में छोड़ दिया जाता है।
जिससे उनका रंग कुछ हल्का हो जाए। आजकल कुछ छिलकों को चटक रंगों में रंगा जाता है तथा आपस में उन्हें बांधने के लिए प्लास्टिक की पट्टियां, टिनसेल या कपड़े का सहारा लिया जाता है।
इससे तैयार की जाती हैं। प्राकृतिक वस्तुओं से बना यह उत्पाद बहुत सामान्य, आकर्षक व पर्यावरणीय दृष्ट से सुरक्षित भी है।