प्रयागराज (ब्‍यूरो)। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गंगा नाथ झा परिसर प्रयागराज एवं विश्व आयुर्वेद मिशन के संयुक्त तत्वावधान में महर्षि चरक जयन्ती समारोह आजाद पार्क स्थित गंगा नाथ झा परिसर में मनाया गया। बीएचयू के पूर्व वीसी प्रो। गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि के रूप में समारोह का उद्घाटन किया। अध्यक्षता केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गंगा नाथ झा परिसर के निदेशक प्रो। ललित कुमार त्रिपाठी ने की। अध्यक्ष, पाण्डुलिपि विज्ञान विभाग डॉ अपराजिता मिश्रा ने अतिथियों का स्वागत किया। विषय प्रवर्तन करते हुए विश्व आयुर्वेद मिशन के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो (डॉ) जीएस तोमर ने कहा कि चित्त की शुद्धि के लिए पातंजल योगसूत्र, वाणी की शुद्धि के लिए व्याकरण महाभाष्य एवं शरीर की शुद्धि के लिए आयुर्वेद शास्त्र का प्रणयन महर्षि पतंजलि ने किया। शास्त्रीय उद्धरणों में एक मान्यता के अनुसार महर्षि चरक ही अहिपति पतंजलि हैं।

चरक ने बताये थे रोग मुक्ति के उपाय
चरक का प्रथम सूत्र रोग मुक्त दीर्घ जीवन की व्याख्या करता है। चरक ने स्वस्थ रहने के उपायों, रोग के हेतुओं, रोगोत्पत्ति की अवस्थाओं, रोग के पूर्वरूप, लक्षण एवं चिकित्सा का विस्तृत वर्णन किया है, जो कि वर्तमान परिदृश्य में पूर्णत: सामयिक एवं वैज्ञानिकता से ओतप्रोत है। विश्व आयुर्वेद मिशन ने प्रयागराज के आयुर्वेद, एलोपैथी, एवं होम्योपैथी विधा के 15 ख्यातिलब्ध चिकित्सकों को चरक चिकित्सा सम्मान से सम्मानित किया। इनमें डॉ कमल जीत सिंह (नेत्ररोग विशेषज्ञ), डॉ। आरके अग्रवाल (सर्जन), डॉ। आरएस दुबे (बाल रोग विशेषज्ञ), डॉ। जीपी शुक्ला (अस्थिरोग विशेषज्ञ), डॉ। प्रीती त्रिपाठी (स्त्री रोग विशेषज्ञ), डॉ। आरएस मौर्य (दंत रोग चिकित्सक), आयुर्वेद चिकित्सक डॉ। बीएस रघुवंशी, डॉ। अवनीश पाण्डेय, डॉ। आरके सिंह, डॉ। आकांक्षा श्रीवास्तव, डॉ। हेमन्त सिंह, डॉ। ऊषा द्विवेदी, डॉ। ख़ुशनुमा परवीन, एवं होम्योपैथी चिकित्सक डॉ। विकास मिश्रा एवं डॉ। आशुतोष कुमार मिश्रा सम्मिलित हैं।

मानव के लिए अनुकरणीय ग्रंथ है चरक संहिता
मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्वोधन में प्रो गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने चरक संहिता को आकर ग्रंथ बताते हुए इसे चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए ही नहीं मानव मात्र के लिए अनुकरणीय ग्रंथ बताया। चरक के सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक एवं वैज्ञानिकता से ओतप्रोत हैं। जीवनशैली जन्य रोगों के बढ़ते हुए दौर में विश्व चिकित्सा जगत आज चरक के सिद्धांतों की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। अध्यक्षीय संबोधन में प्रो ललित कुमार त्रिपाठी ने आयुर्वेद को गौरवशाली परम्परा का महत्वपूर्ण अंग बताया। डॉ अवनीश पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन परिसर के प्राध्यापक डॉ यशवंत त्रिवेदी ने किया।