प्रयागराज (ब्‍यूरो)।

बादल ने बनायी सोलर लाइट
मालिन बस्ती में रहने वाला बादल सातवीं कक्षा का छात्र है। पिता बड़े लाल व मां सुनीता देवी दोनों कबाड़ बीनने का काम करते है। पिता अक्सर कामों में हाथ बांटने की सलाह देते हैं। बादल को इस काम में बिल्कुल रुचि नहीं है। एक दिन विवेक दुबे नाम के एक टीचर की उसकी लाइफ में एंट्री हुई। इसके बाद तो दिन बदलने लगे। विवेक ने उसके अंदर के वैज्ञानिक को जगा दिया। बादल बताता है कि विवेक सर के मार्गदर्शन से मैंने कबाड़ से सोलर पैनल और जरूरी सामान जुटाकर सोलर लैंप बनाया है। धूप में रखने से सोलर पैनल चार्ज हो जाता है और एलईडी लाइट से पावर कट होने पर पर्याप्त रोशनी रहती है।

मोबाइल चार्जर से चलता है पंखा
आर्य कन्या इंटर कॉलेज में सातवीं में पढऩे वाला सागर मोबाइल चार्जर से चलने वाला इलेक्ट्रिक फैन बना चुका है। सागर की मां विजय लक्ष्मी और पिता सतीश वंशकार कूड़ा बीनते हैं। पिता जो भी सामान बीनकर लाते उसमें से अपने मतलब का सामान सागर खोज लेता था। टीचर विवेक कुमार दुबे व आर्य कन्या इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल सुधा रानी उपाध्याय का मार्गदर्शन मिलने के बाद उसने मोबाइल के चार्जर से चलने वाला फैन एक दिन बना दिया। इस फैन से एक आदमी के लिए पर्याप्त हवा मिल जाती है। सागर का प्रयास यहीं नहीं थमा उसने भीषण गर्मी से बचाव के लिए कूलर भी बना डाला है।

शालू ने जुगाड़ से बनाया वैक्यूम क्लीनर
पिता राजेश की मौत हो चुकी है। मां पांच बच्चों का पेट भरने के लिए मलिन बस्ती के बाहर पान-मसाला की गुमटी चलाती है। बड़ी मुश्किल से घर चलता है। मैं (शालू) पढ़-लिखकर अशिक्षा की बेडिय़ां तोड़कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं। आर्य कन्या इंटर कॉलेज में कक्षा 8 में पढ़ाई के दौरान विज्ञान के प्रति रुचि जगी। मैंने के जुगाड़ प्रोजेक्ट के तहत वैक्यूम क्लीनर बनाया है। इससे आसानी से धूल और गर्दा साफ किया जा सकता है। यही नहीं कार के अंदर छोटे-मोटे सामान को भी इसके जरिए उठाया जा सकता है।

करीना और विद्या ने भी कर दिखाया
मैं करीना एक पहल शिक्षा समिति के विवेकानंद केंद्र से प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद आर्यकन्या इंटर कॉलेज में कक्षा 7 में पढ़ रही हूं। पिता बचऊ लाल ट्रॉली चलाते हैं और मां कूड़ा बीनती हैं। मेरा सपना पढ़-लिखकर टीचर बनना है। मैंने जैविक गैस का प्रोजेक्ट तैयार किया है। इसका इस्तेमाल खाना बनाने और रोशनी करने में होता है। विद्या ने भी शिक्षा लेने के बाद मिर्च काटने की मशीन तैयार की है। पापा शिवकुमार और मां चुक्की देवी बांस का डलिया बनाकर घर चलाते हैं।

मैं राजीव हूं। मेरे पिता राम प्रसाद और मां जयंती देवी कबाड़ की दुकान पर काम करते हैं। मैं भी कभी कंचा और ताश की लत के कारण आगे पढ़ाई-लिखाई छोड़ चुका था। मगर, अब फिर से पढ़ाई शुरू कर दी है। आर्य कन्या इंटर कॉलेज में कक्षा नौ में पढ़ रहा हूं, मैंने कबाड़ में मिली चीजों से एक कूलर तैयार किया है। वहीं किरन माध्यमिक विद्यालय मु_ीगंज में कक्षा 8 की छात्रा है। उसने भी विवेक सर के मार्गदर्शन हाइड्रोलिक लिफ्ट बनाई है। माता-पिता कबाड़ बीनने का काम करते हैं। सपना है कि एक दिन अच्छी रिपोर्टर बनूं। उसी लगन के साथ वह पढ़ाई के साथ इन अविष्कारों में जुटी हुई है।

कोमल ने बनाया पेरिस्कोप
कोमल बताती है कि माता-पिता दोनों ही कबाड़ बीनने का काम करते है। घर का माहौल और परवरिश अच्छी नहीं हुई। विवेकानंद केंद्र से जुडऩे के बाद मेरी जिंदगी में बदलाव आया है। मलिन बस्ती के बच्चों की पहल और प्रेरणा से बस्ती में बाहर बैठकर दारू पीना, जुआ खेलना तक बंद हो चुका है। अपने प्रोजेक्ट के बारे में कोमल ने बताया कि उसने पेरिस्कोप बनाया है जो छुपकर दुश्मन की गतिविधियों को देखने के काम आता है। इस प्रोजेक्ट से सैनिक युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों का पता लगा सकेंगे। मैं इस पर और रिसर्च करना चाहती हूं।