प्रयागराज (बयूरो)। सुप्रीम कोर्ट ई कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने देश की सभी हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों को 9 अक्टूबर को पत्र लिखकर एक जनवरी से सरकारी या अद्र्धसरकारी मामलों में ई- दाखिला करने का अनुरोध किया है। यह पेपरलेस कोर्ट की दिशा में शुरूआती कदम बताया जा रहा है। इसी क्रम में केंद्रीय विधि एवं न्याय सचिव अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने 3 दिसंबर को ई-कमेटी के आदेश के अनुपालन में सभी अपर व सहायक सालिसिटर जनरल को मुकद्दमो का ई-दाखिला करने का निर्देश दिया है।
वादकारी की मौजूदगी में हो पारदर्शी न्याय
त्रिपाठी का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 145 में सुप्रीम कोर्ट व अनुच्छेद 225 में हाईकोर्ट को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। दोनों ही संवैधानिक संस्था है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को यह अधिकार नहीं कि वह हाईकोर्ट को निर्देश दे। हाईकोर्ट अधीनस्थ संस्था नहीं है। त्रिपाठी ने कहा कि देश में सभी विभागों व संस्थाओं में काम हो रहा है। कोरोना का असर लगभग समाप्त हो चुका है। कोर्टों को भी जांची परखी न्याय प्रणाली के तहत काम करना चाहिए। न्यायिक सिद्धांत है कि वादकारी की मौजूदगी में पारदर्शी न्याय दिया जाय। जिनके लिए न्यायपालिका स्थापित है उन्हीं को न्याय प्रक्रिया से दूर करना उचित नहीं होगा।
बार संगठनों की चुप्पी पर भी सवाल
त्रिपाठी ने आश्चर्य प्रकट किया कि इतने बड़े कदम पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया व प्रदेश बार काउंसिलों से चर्चा नहीं की गई और न ही कोई इसके पडऩे वाले दुष्प्रभाव पर बोल रहा है। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के संबद्ध बार एसोसिएशन भी चुप्पी साधे हुए है। त्रिपाठी का कहना है कि यूपी की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण परिवेश की है। इंटरनेट कनेक्टिविटी व तकनीकी सुविधा से दूर अधिकांश अधिवक्ताओं के लिए आसान नहीं होगा।