प्रयागराज (ब्यूरो)। मुख्य वक्ता प्रो। आलोक प्रसाद ने बताया कि भारत में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ज्ञान संचार केवल मौखिक रूप में नहीं हुआ है। लिखित दस्तावेजों से भी मजबूत परंपरा रही है। भारत में दुर्लभ पांडुलिपियों के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की शुरुआत 2003 में शुरू हुई और अब तक 50 लाख से अधिक पांडुलिपियों की पहचान और डिजिटाइजेशन हो चुका है। यूनेस्को ने मात्र 9 पांडुलिपियों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है। हमें बाकी के लिए मजबूती से पैरवी करनी चाहिए। प्रो। ललित जोशी ने धन्यवाद ज्ञापन और संचालन डॉ भावेश द्विवेदी ने किया। डा पीएस हरीश, प्रो भारतीदास, प्रो सालेहा रसीद, डा युसुफा नफीस, डॉ अर्चना सिह, डा रफाक, डा आनंद प्रताप चंद, डा अनिल, डा योगेश, डा अंशू, अनिल सिंह, अनिरूद्द, रेनू जायसवाल के साथ छात्र व कर्मचारी मौजूद रहे। प्रदर्शनी 28 अगस्त तक रहेगी।