प्रयागराज (ब्‍यूरो)। विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में कथाकार-उपन्यासकार प्रज्ञा के लोकभारती से प्रकाशित नये उपन्यास काँधों पर घर का लोकार्पण और गोष्ठी हुई। वरिष्ठ आलोचक रोहिणी अग्रवाल, वरिष्ठ कथाकार और परिकथा पत्रिका के संपादक शंकर और वरिष्ठ कथाकार भालचंद्र जोशी शामिल रहे। संचालन युवा आलोचक राकेश कुमार ने किया। कथाकार शंकर ने कहा उपन्यास की प्रस्तावना में प्रज्ञा ने दिल्ली को एक ठहरा हुआ शहर नहीं काफिला माना है। प्रस्तावना में प्रज्ञा ने अपने लिए ही कसौटी नहीं रखी आलोचकों के लिये भी रखी है। मैंने ये उपन्यास पढ़ा है और जो लोग पढ़ेंगे वे पायेंगे कि प्रज्ञा इस कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती हैं।

उपन्यासकार प्रज्ञा ने इस मौके पर कहा कि इस उपन्यास के ज़रिए मैंने विकास के मॉडल पर मानवीय दृष्टि से सवाल उठाने की कोशिश की है। ये लोग जो फीनिक्स की तरह अपनी राख से सृजित होते हैं क्या देश इन्हें अपना नागरिक भी मानता है? उन्होंने उपन्यास के आवरण चित्र के लिये चित्रकार अशोक भौमिक जी का और अपने शहर दिल्ली का आभार व्यक्त किया। दिल्ली पर केंद्रित यह उनका तीसरा उपन्यास है। प्रोग्राम में रंगकर्मी और लेखक शम्सुल इस्लाम, नीलिमा, शैलेय, गरिमा श्रीवास्तव, रश्मि भारद्वाज, ज्ञानचंद बागड़ी, देवयानी आदि अनेक लेखक और युवा पाठक मौजूद रहे।