प्रयागराज (ब्‍यूरो)। छठ का पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा एवं उन्हें अध्र्य देने का विधान है। छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला लोकपर्व है। शुक्रवार को छठ महापर्व नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ था। चार दिवसीय छठ महापर्व के दूसरे चरण में शनिवार को व्रती महिलाओं ने खरना अनुष्ठान किया। व्रती महिलाओं ने शनिवार को दिनभर उपवास रखकर शाम को गुड़ से बनी खीर को चढ़ाया और इसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। खरना के निमित्त सुबह से घरों में उत्साह दिखा। डाला छठ के दूसरे दिन शनिवार को खरना हुआ। इसमें व्रती महिलाओं ने दिन में उपवास रखकर भजन-कीर्तन किया। साथ ही चावल एवं नये गुड़ से खरना बनाया। इसे छठ मइया को चढ़ाया। फिर शाम को गन्ने के रस की खीर बनाकर उसे पांच मिट्टी के बर्तनों में रखा और पूजा एवं हवन करके उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। यहीं से 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत भी आरंभ हो गया।

ठेकुआ होता है मुख्य प्रसाद
सोमवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद इस व्रत की समाप्ति होगी। घर-आंगन में छठ मइया के गीत गूंज रहे हैं। छठ मइया का मुख्य प्रसाद ठेकुआ बनाया जा रहा है। घर-आंगन में छठ मइया के गीत 'कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जायÓ, 'होव न सुरुज देव सहइया बहंगी घाट पहुंचायÓ, 'संगम के घाट पर हमहूं अरघिया देबई हे छठी मइया, केलवा के पात पर उगेलन सुरुजदेवÓ आदि गूंज रहे हैं।

सिर पर टोकरी रखकर चलते है पुरुष
महिलायें मांगलिक गीत गाते हुए गंगा या यमुना घाट तक जायेंगी। उनके साथ घर के पुरुष सिर पर टोकरी रखकर चलेंगे। टोकरी में सूप, जलता दिया, केला गन्ना, मूली, अमरूद, खरना इत्यादि रखा जायेगा। वहीं घाट पर पहुंचकर गन्ने के 12 पेड़ का मण्डप बनाया जायेगा। जिसमें व्रती महिलायें पूजा करती हैं। इसके बाद पूरी रात घाट पर ही बिताया जायेगा और सोमवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा। बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपने घर के छत पर ही वेदी बनाकर पूजा की तैयारी की है।