प्रयागराज (ब्यूरो)। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट में बंदरों आतंक से परेशान व बंदर पकडऩे का बजट का रोना रो रहा विभाग की खबर प्रकाशित होने के बाद उच्चधिकारियों ने मामले को गंभीरता से संज्ञान में लिया। मामला उच्चधिकारियों तक पहुंचते ही टारजन को इस काम के लिए अनुमति दी गई।
4 कैचर लगा कर बंदर पकड़ रही टीम
प्रयागराज संगम स्टेशन पर दिन भर बंदर उछल कूद करने के साथ पूरे परिसर में उत्पात मचाते रहते हैं। यहां तक कि ट्रेन पकडऩे पहुंचने वाले यात्री और स्टाफ तक को काट ले रहे हैं। इन बंदरों को पकडऩे के लिए वन विभाग ने वाइल्ड लाइफ एंड फॉरेस्ट फ्रेंड कंजर्वेशन ट्रस्ट के टारजन की टीम भेजा गया। सबसे बड़ी यह है कि रेलवे स्टेशन पर सैंकड़ों की संख्या बंदर मौजूद है। लेकिन वन विभाग ने टारजन को सिर्फ बीस बंदर पकडऩे की लिखित अनुमति दी। एक बंदर पकडऩे का रेट 14 सौ रुपये में फिक्स किया गया। बीस बंदर का 28 हजार रुपये फिक्स हुआ। बंदरों को पकडऩे के लिए टारजन ने तीन रेस्क्यू मंकी कैचर और एक मंकी ट्रांसफर पेटी लगाया गया।
पहले भरा गया पेट
बंदरों को पकडऩे आए वाइल्ड लाइफ एंड फॉरेस्ट फ्रेंड कंजर्वेशन ट्रस्ट के टारजन बीके टारजन ने बताया कि पहले पिंजड़ा (कैचर) रखा जाता है। उस पिंजड़े में चना और केला डाला गया। बंदरों को पहले पेट भर खिलाया जाता है। ताकि उनको लगे पिंजड़े में सिर्फ खाना मिलता है। पकड़ा नहीं जा रहा है। अगर शुरुआत में दो-चार को खाना देकर पकड़ लिया जाएगा तो बाकि अलर्ट हो जाएंगे। फिर कोई भी पिंजड़े में नहीं आएंगे। लेकिन आठ घंटे बाद फिर से भूख लगने पर पूरा झुंड पिंजड़े में आकर बैठ जाते हैं। उसके बाद उनको धीरे से पिंजड़ा बंद कर पकड़ लिया जाता है। इससे ज्यादा बंदर पिंजड़े में पकड़े जाते है। जो ज्यादा चतुर होते हैं। उनको ट्रांसफर पेटी में शिफ्ट किया जाता है। ताकि दूर ले जाने पर सही से देख न पाएं।
बीस के बाद कार्रवाई ठंडा पडऩे का डर
वन विभाग को बार-बार लिखित शिकायत कर रहे स्टेशन अधीक्षक एएम पाठक को डर सता रहा है। उनका कहना है कि कही बीस बंदर पकडऩे के बाद कही रेस्क्यू थम न जाएं। क्योंकि रेलवे स्टेशन परिसर के अंदर सौ से अधिक बंदर है। वहीं टारजन का कहना है कि बीस पकडऩे के बाद आगे और बंदर पकडऩे की लिखित अनुमति मिलेगी तब ही आकर अन्य बंदरों को पकड़ेंगे। इन बंदरों को पकडऩे के बाद शंकरगढ़ जंगल में छोडऩे की बात टारजन ने बताई।
नगर निगम से मिलता है बजट
बंदरों को पकडऩे के लिए बकायदा नगर निगम को 2010 से बजट मिल रहा है। लेकिन इसके लिए वन विभाग की अनुमति भी जरूरी है। बस वन विभाग को नगर निगम से पकडऩे के लिए बजट का डिमांड करना होता है। सूत्रों की माने तो पहले दिन रेलवे की तरफ से शिकायत पत्र भेजने पर वन विभाग की तरफ से एक टीम पहुंची थी। जिसने बंदरों को पकडऩे के लिए रेलवे से बंदर पकडऩे का खर्चा तक मांगा था। मगर मामला उच्चधिकारियों तक पहुंचते ही बजट भी आ गया और रेस्क्यू भी शुरु हो गया।
बीस बंदर पकडऩे की अनुमति वन विभाग की तरफ से टारजन को मिली है। वन विभाग का कहना है कि बीस के पकड़े जाने के बाद फिर बीस पकडऩे की अनुमति दी जाएगी। यह सब मुमकिन दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट द्वारा मुद्दा उठाने पर हुआ है।
वर्जन, एएम पाठक, प्रयागराज संगम स्टेशन अधीक्षक उत्तर रेलवे
2019 में एक बार बंदर पकडऩे के लिए बुलाया गया था। 23्र्र00 रुपये के हिसाब से पेमेंट किया गया था। फिलहाल इन बंदरों को पकडऩे के लिए एक बंदर पर 14 सौ रुपये दिये जा रहे हैं। शुक्रवार की सुबह बंदर को जाल में फंसा लिया जाएगा। उसके बाद शंकरगढ जंगल में छोड़ा जाएगा। आज पूरे दिन रेस्क्यू चला है।
बीके टारजन, वाइल्ड लाइफ एंड फॉरेस्ट फ्रेंड कंजर्वेशन ट्रस्ट