प्रयागराज (ब्यूरो)। 120 बेड के चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में इस समय दस बेड एनआईसीयू और दस बेड पीआईसीयू वार्ड में हैं। इनमें से 14 बेड पर वेंटीलेटर हैं। यह भी कम पड़ गए हैं। क्योंकि रोजाना इससे डेढ़ से दोगुना मरीजों को वेंटीलेटर की आवश्यकता होती है। रीजन का एकमात्र बच्चें का अस्पताल होने की वजह से आसपास के आधा दर्जन से अधिक जिलों के बच्चे यहां इलाज के लिए रेफर किए जाते हैं। लेकिन मौके पर वेंटीलेटर उपलब्ध नही होने पर इन बच्चों की जान पर बन आती है। जानकारी के मुताबिक कोरोना काल में हॉस्पिटल को नए वेंटीलेटर मिले थे। मानक के अनुरूप किसी अस्पताल में आईसीयू बेड के हिसाब से तीस फीसदी में वेंटीलेटर होना चाहिए। लेकिन यहां संख्या 70 फीसदी तक पहुंच गई है।
प्राइवेट अस्पताल भी करते हैं रेफर
सीरियस मरीजों को प्राइवेट अस्पताल भी चिल्ड्रेन अस्पताल में रेफर करते हैं। मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा है कि एक बेड पर दो से तीन मरीज भर्ती करने पड़ते हैं। सही मायने में अस्पताल को अतिरिक्त वेंटीलेटर्स की जरूरत है। जिससे आसपास के जिलों से आने वाले सीरियस मरीजों की जान बचाई जा सके। अस्पताल स्टाफ का कहना ह कि अस्पताल की वायरिंग भी काफी पुरानी हो चुकी है। इसे बदलवाना जरूरी है। अगर नए वेंटीलेटर लगेंगे तो आए दिन शार्ट सर्किट की वजह से आग लगने की घटनाएं होंगी। वर्तमान में लगे 14 वेंटीलेटर की वजह से भी दो बार वायरिंग में आग लग चुकी है।
शासन से मदद मिले तो बचे बच्चों की जान
वेंटीलेटर के अभाव में बच्चों की होने वाली मौतों पर लगाम लगाने के लिए पहले तो वेंटीलेटर्स की संख्या बढ़ाई जाए और यहां की विद्युत वायरिंग को बदला जाना जरूरी है। अन्यथा ऐसे ही सीरियस बच्चों की जान जाती रहेगी। अब्दुल के परिजनों का कहना है कि उसे प्राइवेट अस्पताल वालों ने चिल्ड्रेन में रेफर किया था। अगर समय रहते वेंटीलेटर मिल जाता तो उसकी जान बचाई जा सकती थी। लेकिन रात भी इंतजार करने के बाद भी सफलता नही मिल पाई।
बच्चे की हालत सीरियस थी। उसे अंबु बैग पर रखा गया था। इंतजार किया जा रहा था कि वेंटीलेटर खाली हो तो उसे शिफ्ट किया जाए। तब तक उसकी डेथ हो गई। हमारे यहां मानक से अधिक वेंटीलेटर है लेकिन इस समय सभी फुल चल रहे हैं।
डॉ। मुकेश वीर सिंह, एचओडी, चिल्ड्रेन अस्पताल प्रयागराज