आगरा(ब्यूरो)। एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के डॉ। जीवी सिंह ने बताया कि जिन लोगों में छोटेपन से रैस्पिरैटरी संबंधी समस्याएं रहती हैैं उन्हें निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है। 60 की उम्र के बाद इससे डेथ होने के चांस भी काफी ज्यादा बढ़ जाते हैैं। उन्होंने बताया कि निमोनिया के कारण फेंफड़ों की झिल्ली में पस पडऩे की समस्या सामने आने लगती है। जल्दी पता चलने से इस स्थिति से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि आजकल एचआरसीटी इत्यादि की सुविधाएं बढ़ गई हैैं तो ऐसी स्थिति में हमें ऐसी स्थिति को पहचानना आसान हो जाता है। इससे वायरल, इंफ्लुएंजा का पता चल सकता है।
डॉ। जीवी सिंह ने बताया कि जो लोग क्रॉनिक रैस्पिरैटरी डिजीज वाले मरीज हैैं। तो अपना निमोनिया से बचाव को वैक्सीनेशन करा सकते हैैं बाजार में यह अवेलेबल है। कई इंटरनेशनल स्टडीज बताती हैैं कि वैक्सीन निमोनिया से बचाव में कारगर हैैं। उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों और बुजुर्गों को इससे बचाव की ज्यादा जरूरत है। इस मौसम में ठंड से बचें, कपड़े पूरे पहनें, ठंडे पेय पदार्थ पीने से बचें, सुबह और शाम को बॉडी को कवर करके निकलें। मास्क जरूर पहनें।
बैक्टीरियल इंफेक्शन से फैलता है निमोनिया
चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ। अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि निमोनिया बैक्टीरियल इंफेक्शन का कारण हो जाता है। बैक्टीरिया नाक और मुंह के जरिए वायुमार्ग से फेफड़ों में जाते हैं। इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत हो तो शरीर इन बैक्टीरिया को निष्प्रभावी कर देता है। इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होने पर यह बैक्टीरिया हावी हो जाता है। एक ही समय में एक या दोनों फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है। कई बार निमोनिया का बैक्टीरिया शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसे में अस्पताल में भर्ती करने की नौबत भी आ सकती है।
बच्चों का होता है वैक्सीनेशन
जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ। संजीव वर्मन ने बताया कि निमोनिया दो प्रकार का होता है लोबर निमोनिया और ब्रोंकाइल निमोनिया। लोबर निमोनिया फेफड़ों के एक या ज्यादा हिस्सों (लोब) को प्रभावित करता है। ब्रोंकाइल निमोनिया दोनों फेफड़ों के पैचेज को प्रभावित करता है। डीआईओ ने बताया कि पीसीवी की वैक्सीन डेढ़ माह पर पोलियो खुराक, पेंटा, और आईपीवी के साथ दिया जाता है यही प्रक्रिया साढ़े तीन माह पर अपनाई जाती है और नौ माह के बच्चे को खसरे के वैक्सीन के साथ दिया जाता है। इसलिए अपने बच्चे का वैक्सीनेशन अवश्य कराएं।
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ये होते हैं लक्षण
- तेज बुखार
- छाती में दर्द
- मितली या उल्टी
- दस्त
- सांस लेने में कठिनाई
-थकान और कमजोरी
-कफ के साथ खांसी आदि
यह बरतें सावधानी
-हाथों को नियमित रूप से साबुन और पानी से धोएं। कुछ खाने या पीने से पहले भी हाथों को साफ करें।
- खांसते और छींकते समय मुंह पर रुमाल रखें।
- इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करने के लिए एक हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाएं।
- हेल्दी फूड खाएं और नियमित रूप से योग, प्राणायाम और एक्सरसाइज करें।
- निमोनिया और फ्लू से बचाव के लिए कुछ वैक्सीन उपलब्ध हैं, इन्हें लगवाकर इस जोखिम से बच सकते हैं।
-ठंड से बचें
-कपड़े पूरे पहनें
-ठंडे पेय पदार्थ से बचें
-सुबह शाम को बॉडी कवर करें
-मास्क जरूर करें
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इन्हें होता है ज्यादा खतरा
-छोटे बच्चे
-एल्कोहोलिक
-डायबिटिक
-एचआईवी पेशेंट्स
-कैंसर पेशेंट्स
-बुजुर्ग
-पोस्ट कोविड पेशेंट्स
-लॉन्ग कोविड पेशेंट्स
-टीबी से ठीक हो चुके या उपचार करा रहे पेशेंट्स
-सीओपीडी के मरीज
- अस्थमा के मरीज
छोटे बच्चों और बुजुर्गों को निमोनिया का खतरा रहता है। उम्र बढऩे पर यह घातक साबित हो सकता है। कोविड या टीबी से पीडि़त रह चुके मरीज अपना बचाव अवश्य करें। बचाव के लिए वैक्सीन भी लगवा सकते हैैं।
- डॉ। जीवी सिंह, टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट, एसएनएमसी
बच्चों को बदलते मौसम से बचाएं। उन्हें पूरे कपड़े पहनाएं। निमोनिया की रोकथाम के लिए बच्चों को सरकार द्वारा कराए जा रहे रेग्यूलर वैक्सीनेशन में पीसीवी की वैक्सीन लगाई जाती है। इसलिए बच्चों का वैक्सीनेशन जरूर कराएं।
- डॉ। अरुण श्रीवास्तव, सीएमओ