देवदत्त
आगरा(ब्यूरो)। इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैैं कि आगरा के इतिहास में महिलाओं का दबदबा रहा है। आज से 787 साल पहले गुलाम वंश की रजिया सुल्तान ने दिल्ली की गद्दी संभालकर महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की थी, तब आगरा गुलाम वंश का हिस्सा था। इसके बाद मुगल वंश के संस्थापक बाबर की बेटी गुलबदन बेगम ने भाई हुमांयू की जीवनी पर हुमायूंनामा लिखा था, जो बेहद दिलचस्प है। जहांगीर की बेगम नूरजहां ने अपने नाम के सिक्के चलवाए। शाहजहां की बेटी जहांआरा और रोशनआरा की भी राजनीति में खूब दखल थी। जहांआरा उस समय दुनियां की सबसे अमीर शहजादी थी।
महिला शासक रजिया सुल्तान
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने बताया कि गुलाम वंश में कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद दिल्ली का सुल्तान इल्तुतमिश बना था। सुल्तान इल्तुतमिश की बेगम कुतुब की कोख से बदायूं में सन 1205 में रजिया सुल्ताना पैदा हुई थी। उनका पूरा नाम जलाल उद्दीन रजिया था। रजिया सुल्तान भारत की पहली और आखिरी महिला सुल्तान थी। रजिया सुल्तान सबसे सशक्त महिला थी। वह अपने भाई फिरोज को हराकर सन 1236 में दिल्ली की सुल्तान बनी थी। रजिया के सुल्तान बनने का तुर्क मंसबदारों ने विरोध किया। रजिया ने अपने कुशल नेतृत्व से लाहौर, भठिंडा, मुल्तान और बदांयू समेत अन्य मंसबदारों का दमन किया। उसने सन 1240 तक दिल्ली दरबार पर शासन किया था, तब आगरा भी दिल्ली दरबार में आता था। रजिया को अन्य मुस्लिम राजकुमारियों की तरह सेना का नेतृत्व तथा प्रशासन के कार्यों में अभ्यास कराया गया था। अपने शासन काल में रजिया सुल्ताना को अपने भाइयों और शक्तिशाली तुर्क मंसबदारों के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा था। रजिया सुल्तान और अफ्रीकी गुलाम मंसबदार जलालुद्दीन याकूत की प्रेम कहानी खूब चर्चा में रही थी। दोनों के प्यार के चलते ही विद्रोह हुआ। तुर्क मंसबदारों ने याकूत की हत्या कर दी थी। रजिया सुल्ताना ने सत्ता पाने के लिए मलिक अल्तुनिया से निकाह किया था। सत्ता हाथ से जानें पर दोनों जंगल में गए, जहां पर डाकुओं ने रजिया सुल्तान और मलिक अल्तुनिया की हत्या कर दी थी।
गुलबदन बेगम ने की हुमायूं की मदद
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैैं कि बाबर की बड़ी बेटी गुलबदन बेगम थी। उसका जन्म काबुल अफगानिस्तान में हुआ था। गुलबदन बेगम बेहद प्रतिभाशाली थी। वह अपने सौतेले भाई मुगल बादशाह हुमायूं की बेहद करीबी और मददगार थी। गुलबदन बेगम इतिहासकार थी। उसने हूमायूं के जीवन पर हुमायूंनामा किताब लिखी थी, जो बेहद चर्चित है। हुमायूं जब शेरशाह से हारकर अफगानिस्तान होकर ईरान भागा, तो गुलबदन बेगम ने हुमांयू की मदद की थी। हुमांयू के ज्यादातर निर्णय गुलबदन बेगम से प्रभावित रहते थे। गुलबदन बेगम का दबदबा बादशाह अकबर के समय में भी था।
तीन करोड़ की मालकिन जहां आरा
राज किशोर राजे बताते हैैं कि जहांआरा अपने छोटे भाई दाराशिकोह की सबसे खास थी। जब शाहजहां के उत्तराधिकार को लेकर दाराशिकोह और औरंगजेब में युद्ध हुआ तो जहांआरा ने दारा शिकोह का साथ दिया था। इसलिए औरंगजेब उसे अपना विरोधी मानता था। औरंगजेब के युद्ध जीतने के बाद शाहजहां को आगरा किले में कैद कर लिया गया। तब जहांआरा ने पिता शाहजहां के अंतिम दिनों में उसके साथ रही। शाहजहां की मौत के बाद औरंगजेब से उसके संबंद्ध बेहतर हुए तो उसे राजकुमारियों की महारानी का खिताब दिया गया। इसके बाद सन 1644 में आग लगने से जहांआरा घायल हो गई थी, तब शाहजहां ने इसके ठीक होने पर इसके वजन का सोना गरीबों में बंटवाया था। 16 सितंबर 1681 में जब जहांआरा की मौत हुई थी, तब उसके पास तीन करोड़ रुपए की संपत्ति पाई गई थी।
रोशन आरा ने की भाई की मदद
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैैं कि शहंशाह शाहजहां की छोटी बेटी रोशनआरा थी। जब शाहजहां के उत्तराधिकारी का युद्ध हुआ, तो रोशनआरा ने दाराशिकोह का विरोध किया था। वह औरंगजेब की खास थी। इसलिए उसकी मदद की। युद्ध के समय सभी सूचनाएं औरंगजेब के खेमे में भिजवा देती थी, जिससे ही समोगढ़ के युद्ध में औरंगजेब की जीत हुई थी। उसने ही शाहजहां की चालाकी और औरंगजेब की हत्या करने की योजना की जानकारी उसे पहले ही दे दी थी, जिससे औरंगजेब की जान बची थी और वह मुगलिया सल्तनत का बादशाह बना था।
आगरा के इतिहास में महिलाओं का दबदबा रहा है। रजिया सुल्तान से लेकर रोशन आरा और जहां आरा हों। आगरा में महिलाओं ने राजनीतिक दखल रखी है।
- राज किशोर राजे, इतिहासकार