आगरा(ब्यूरो) । एसएन मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) का गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की निरीक्षण किया। पूरे देश में यूनिसेफ की टीम ने एसएन को निरीक्षण के लिए चुना। इलाज के प्रोटोकाल की सराहना करते हुए हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। टीम ने एनआईसीयू में भर्ती मरीजों के इलाज पर भी चर्चा की। यूनिसेफ दक्षिण पूर्वी क्षेत्र के हेड जेआई काल्वो के नेतृत्व में टीम ने बाल रोग विभाग के एनआईसीयू का निरीक्षण किया।

ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल को सराहा
बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ। नीरज यादव ने बताया कि टीम ने नवजात के इलाज पर चर्चा की। एसएन में हर नवजात के इलाज के लिए तैयार किए गए ट्रीटमेंट प्रोटोकाल को सराहा। साथ ही टीम वर्क द्वारा किए जा रहे कार्य की प्रशंसा की। समय पूर्व प्रसव के बाद भर्ती हो रहे नवजात के इलाज पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि पूरे देश में यूनिसेफ की टीम ने एसएन के बाल रोग विभाग को ही निरीक्षण के लिए चुना यह बड़ी उपलब्धि है। यूनिसेफ की टीम ने एसएन के एनआइसीयू के संचालन में टेक्नीनिकल, आर्थिक सहित अन्य मदद का भरोसा दिलाया। निरीक्षण के दौरान डॉ। अमित मल्होत्रा, डॉ। आनंद, रोजर केजकेस, टीना एलसेविक आदि मौजूद रहे।

कब रखा जाता है बच्चों को एनआईसीयू में
जिन नवजात शिशुओं को इंटेंसिव मेडिकल केयर की जरूरत होती है, उन्हें अक्सर अस्पताल के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा जाता है। एनआईसीयू में एडवांस टेक्नोलॉजी और ट्रेंड हेल्थ प्रोफेशनल्स होते हैं जो शिशुओं की खास देखभाल करते हैं। जो बच्चे बीमार नहीं होते हैं लेकिन उन्हें स्पेशलाइज्ड नर्सिंग केयर की जरूरत होती है, उन्हें भी एनआईसीयू में रखा जाता है। जिन बच्चों का प्रीमैच्योर जन्म होता है या जो जन्म के समय बीमार होते हैं, उनके लिए एनआईसीयू किसी वरदान से कम नहीं है। अगर मां की उम्र 16 साल से कम या 40 साल से ज्यादा हो, उसे शराब की लत हो, डायबिटीज, हाई बीपी, ब्लीडिंग, यौन संक्रमित रोग, मल्टीपल प्रेग्नेंसी और बहुत कम या ज्यादा एम्निओटिक फ्लूइड होने पर बेबी को एनआईसीयू की जरूरत पड़ती है। या बच्चों का जन्म प्रेग्नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले हो जाता है, उन्हें एनआईसीयू में रखा जाता है या जो लो बर्थ वेट होते हैं। कुछ स्वास्थ्य जटिलताओं की स्थिति में भी बेबी को एनआईसीयू में रखा जाता है। जिन बच्चों को सांस लेने में दिक्कत, हार्ट प्रॉब्लम, इंफेक्शन या जन्म विकार हो, उन्हें भी एनआईसीयू केयर दी जाती है।

बच्चे को देख सकते हैं माता-पिता
पैरेंट्स अपने बेबी के साथ समय बिताने के लिए एनआईसीयू में जा सकते हैं। हो सकता है कि बाकी फैमिली मेंबर्स को इसकी अनुमति ना हो। एनआईसीयू में जाने से पहले हाथ धोने चाहिए ताकि बेबी तक कीटाणु ना पहुंच सकें।

एनआईसीयू का क्या मतलब है?
एनआईसीयू का पूरा नमा है निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट। अस्पताल में इस नाम से एक नर्सरी होती है जहां बीमार या प्रीटर्म बेबी को रखा जाता है। बेबी की बीमारी की गंभीरता पर यह निर्भर करता है कि उसे एनआईसीयू में कब तक रहना पड़ेगा। आमतौर पर बेबी को 13.2 दिनों के लिए यहां रहना होता है। हालांकि, जिन बच्चों का जन्म 32वें हफ्ते से पहले हुआ है, उन्हें 46.2 दिनों तक रूकना पड़ सकता है।

एनआईसीयू में क्या शामिल है?
एनआईसीयू में उच्च आवृत्ति वाले वेंटिलेटर, बिली लाइट, ब्लड प्रेशर मॉनिटर, कार्डियो पल्मोनरी मॉनिटर, सेंट्रल लाइन, सीपीएपी, एंडोट्रैचियल ट्यूब, गैस्ट्रोस्टोमी ट्यूब, इनक्यूबेटर, नाभि कैथेटर, फीडिंग ट्यूब और अन्य समान उपकरण शामिल हैं। यह सभी आवश्यकताओं से सुसज्जित है, और आपको अपने बच्चे के स्वास्थ्य और कल्याण पर चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी। आप इस सब पर विचार करने का काम विशेषज्ञों पर छोड़ सकते हैं। वहां डॉक्टर, आहार विशेषज्ञ, चिकित्सा देखभालकर्ता, नियोनेटोलॉजिस्ट, रेजिडेंट डॉक्टर और कुछ अलग-अलग विशेषज्ञ होंगे जो लगातार चीजों की देखभाल करेंगे।